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________________ जाहिर उद्घोषणा. ( मुंहपत्ति में दोरा डाल कर बांधना नहीं लिखा. ) २९. जब ढूंढियों को पूछने में आता है कि मुंहपत्ति में दोरा डालकर बांधना किसी सूत्र में नहीं लिखा जिस पर भी दोरा क्यों डालते हो इसपर ढूंढिये कहते हैं कि जैसे साध्वी के साडेमें दो डालने का नहीं लिखा तोभी दोरा डाला जाता है वैसेही मुंहपत्ति में दोरा डालने का नहीं लिखा तोभी समझ लेनाचाहिये ऐसा कहकर मुंहपत्ति में दोरा डालना ठहराते हैं, सोभी अनुचित है क्योंकि देखो - साध्वी के साडेमें तो लज्जा ढकने के लिये दोरा डालने में आता है परंतु मनुष्योंका मुंह लज्जनीय नहीं है इसलिये गुह्य और लज़नीय स्थान बांधनेका दृष्टान्त बतलाकर जगतमें प्रकट और शोभनीय मुंह बांधने का दोरा साबित करना बडी भारी निर्विवेकता है। दूसरी बात यहभी है कि जब कभी दुर्गधी की जगह जाना पडे या उपाश्रय की प्रमार्जना करने के समय सूक्ष्म रजकण मुंहमें न जाने पावे इसलिये दोरा डाले बिनाही मुंहपत्तिको त्रिकोणी करके मस्तक के पीछेके भाग में गांठ आसके वैसी रीति से थोडी देरके लिये नाक-मुंह दोनों बांधनेकी मर्यादा बतलाई है उसरीति को छोड़कर अपनी कल्पनासे दोरा डालनेका तथा नाक खुला रखकर अकेला मुंहको हमेशा बांधनेका नया ढोंग चला कर सर्वज्ञ शासनकी हीलना करवाना सर्वथा अयोग्य है । २२ ( बोलने में कभी उपयोग न रहे तो भी हमेशा मुंहपत्ति बांधी रखना बहुत बुरा है) ३०. ढूंढिये कहते हैं कि बोलते समय मुंहकी यत्ना करनेका कभी उपयोग न रहे तो दोष लगे जिससे हमेशा बांधी रखना अच्छा ही है उससे कभी उघाडे मुख बोलनेका दोष न लगे. यह भी इंढियों का कहना अनसमझका है क्योंकि साधुका धर्म ही उपयोग में है, जिस को शुद्ध उपयोग नहीं है उससे शुद्ध संयम धर्म कभी नहीं पल सकता. देखोः- किसी को उपयोग न रहा भूलसे स्त्रीका रूप देखने लगगया उससे उसके आंखों पर हमेशा पाटा बांधा रखना कोई अच्छा नहीं मान सकता तथा किसी साधु को कभी चलनेमें उपयोग न रहा उस से कीडी-मेंडक वगैरह जीवोंकी हानि होगई जिससे चलने काही बंध करके एक जगह पडे रहना कोई भी अच्छा नहीं कह सकता किंतु उप
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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