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________________ जाहिर उद्घोषणा. . ऐसा उल्टा अर्थ करतेहैं और इस वाक्यके प्रमाणसे हमेशा मुहपत्ति बांधनेका ठहरातेहैं सो यहभी उत्सूत्र प्ररूपणाहै क्योंकि- देखो विचार करो, गौचरी जाकर पीछे उपाश्रयमें आये बाद इरियावही करनेवाला साधुकानों में मुंहपत्ति डाले बिना इरियावही करे तो प्रायश्चित्त आवे ऐसा अर्थ ढूंढिये करतेहैं इससे तो यही सिद्ध हुआ कि- जब साधु गौचरी गयाथा तब उसके मुंहपर मुंहपत्ति बांधी हुई नहींथी यदि पहिलेसही मुंहपत्ति बांधी हुई होती तो उपाश्रयमें आये बाद इरियावही करनेके लिये कानोंमे मुंहपत्ति डालनेका कभी नहीं कहसकते, इसलिये “कन्नेछियाए” इत्यादि यह पाठ कानों में मुंहपत्ति डालने का निषेध करताहै और कानों में डालने वालेको प्रायश्चित्त बतलाताहै इससे ढूंढियोंकेलिये यह पाठ मुंहपत्ति बांधनेका साधक नहीं, किंतु बाधकहै इसलिये हमेशा मुंहपत्ति बांधनेका झूठा हठाग्रह आत्मार्थियों को छोड़नाही योग्य है । ___(गौतमस्वामीका और अईमत्ता कुमारका विचार) ___९. ढूंढिये कहते हैं कि गौतमस्वामी पौलाशपुरी नगरीमें गौचरी गयेथे तब अइमत्ता कुमारने गौतमस्वामीकेजीमने हाथकी अंगुली पकड़ ली और रास्तेमें बातें करते हुए आहार वहोरानेके लिये अपने राज महलमें लेगयाथा, उस वख्त गौतमस्वामीके मुंहपर मुंहपत्ति बांधीहुईथी, ढूंढियोंका ऐसाकहना प्रत्यक्ष झूठहै, रास्तेमें बातें करते हुए चले थे, ऐसा "अन्तगड़दशा" सूत्र में नहीं लिखा. और साधुको रास्तेमें चलते हुए बातें करना कल्पताभी नहींहै, तोभी जैसे छींक वगैरह आवें तो खड़े रहकर नाक और मुंह दोनोंकी यना करतेहैं, इसी तरह रास्तेमें चलते हुए यदि खास जरूरी बातें करने का काम पड़जावे तो खड़े रहकर मुंहपत्तिसे या चहरादि अन्य वस्त्रसे अथवा जिसतरह कई गृहस्थी लोग मुंहआगे दुपट्टेको खंधेपरसे आडा डालकर बातें करते हैं तैसेही साधुके डावे खंधेपर जो कंबली रहतीहै उसको मुंहआगे जीमने खंभेपर डालकर मुंहकी यत्ना करके गौतमस्वामी बातें कर सकते थे, इसमें हमेशा मुंह बंधा रखनेका किसीतरहसे साबित नहीं हो सकता इसलिये गौतमस्वामी के और अइमत्ता कुमार के दृष्टांत बतलाकर . हमेशा मुंहपत्ति बांधनेका ठहराने वालोंकी बड़ी अज्ञानताहै ।
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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