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________________ ( ३ ) [१] विश्व-विजय करने वाले श्री हीरविजय गुण गण के धाम, विश्व-विदित कर दिया आपने जन्म-स्थल पालनपुर ग्राम । पाटन नगर गए शिशुता में मात पिता से रहित हुए, विजयदान सूरीश्वर से दीक्षा पा कर सुख सहित हुए ॥ [२] कुछी दिनों के बाद देवगिरि चले गये देवोपम श्राप, वहां धर्मसागर जी से पढ़ हुए न्याय पारंगम 'श्राप । विद्या के वैभव को पाकर तुरत विश्व-विख्यात हुए, गूढ़ तत्त्व भी सभी आपको बात बात में ज्ञात हुए ॥ . [३] गुण-यश-गान आपका सुनकर नृप अकबर ने बुलवाया, रनादिक उपहार आपके आगे उसने रखवाया। किन्तु आपने लिया न कुछ भी, साधु-धर्म का रक्खा मान, मुनिवर ! होकर मुग्ध पाप से उसने लिया ज्ञान का दान ॥ . . [४] मुने ! आपकी श्राक्षा मानी अकबर ने निज गुरुवत् मान, तुरत निकाला उसने अपने राज्यमात्र में यह फ़मीन । "नवरोजे में या रवि के दिन वर्षे गाठे मम जब श्रावे, कोई हिंसा करे नहीं, यदि करे कठिन निग्रह पावे" ॥ [५] अपना गुरु श्री हीरविजय को अकबर ने जब मान लिया, तुरत जपद्गुरु की पदवो दे कर उनका सम्मान किया।
SR No.032019
Book TitleHirvijaysuri Stuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Traict Society
PublisherAtmanand Jain Traict Society
Publication Year1927
Total Pages10
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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