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________________ (९) योग बायो हिंसाहुवे, भगवतीमें वातजी। आज्ञादि सुभ योगकी प्रभु, मेलो उववाइ सातजी ॥मु॥८९।। बारा व्रत लेसुं इम बोल्यो, आणंद उपासक जोयजी। आठत उचरीयां जाणौ, अतिचार वारेका होयजी मु।९। वनस्पति संघट्टो नहि करणो, भगवतीमे लेखजी। झाड पकड खाडासु नीकले, आचारंग लो देखजी ।मु॥९१॥ समय मात्र प्रमाद न करणो, उत्तराध्ययन दशमे जाणजी। तीजी पेहेरे निद्रा लेणी, छावीसमे अध्ययन परमाणजी ।मु।९२॥ गृहस्तीने कठण नहि बोले, निशीथ सूत्रमें लेखजी। केसी कहे मुह तुच्छ प्रदशी, रायपसेणी लो देखजी ॥।॥१३॥ निसाथमे साधुने वरज्यौ, कोई चीज देखवा जायजी। विपाक गौतम मृगा लौढौ, देखो जीनवर भायजी (मु१४॥ गृहस्तीसे प्रचो नहि करणो, दश विकालीक जाणजी। गौतम अंगुली पकडी अमंतो, आ अंतगडकी वाणजी ।मु[९५। छ पुरुष सातमी स्त्री, अंतगड अर्जुन जाणजी। पुरुष सातमो छे कही स्त्री, प्रगट पाठ परमाणजी मू॥९६।। इत्यादि बहु बोलवालीया, मूलसूत्रमें नालजी। स्याद्वादकी सेली विना, तेकिम जाणे बालजी ।मु।।९७॥ जो नहि माने ते पंचागी, तासुं कहीये तेमजी । मूल पाठथी उत्तर आपो, जब बोले पाधरा एमजी ॥7॥९८॥ परमपरा नवले धारणा, टबा अर्थमे जोयजी । मत यक्षारा वातां सुणतो, आश्चर्य उपजे मोयजी ।मु॥१९॥ लुकाजी मजुरी करता, चोरीसे उलटो ज्ञानजी। परंपरा तुमे केहनी चालो, हिरदे आणो ज्ञानजी ॥मू॥१०॥ टबा वालो हेला पाडे, में कीयो. टीका अनुसारजी। ..
SR No.032012
Book TitlePrashnamala Stavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherJain Pathshala
Publication Year1917
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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