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________________ परिशिष्ट पर्व. . सातवाँ. घर जाकर धर्मलाभपूर्वक वसतिकी याचना की 'कुबेरसेना' ने भी 'कुबेरदत्ता' साध्वीको भक्तिपूर्वक नमस्कार किया और कहा हे आर्ये ! मैं प्रथम वेश्या थी परन्तु इस वक्त मैं एक पतिको अंगीकार करनेसे कुलवधुओंके समान हूँ और कुलवधुओंके समानही यह मेरा वेश है इसलिए मैं आप लोगोंकी भी कृपापात्र हूँ अन्त एवं आप इस मेरे घरके पासके मकानमें उतरकर मुझे अनुग्रहित करो। अवसरको जाननेवाली 'कुबेरदत्ता' साध्वी सपरिवार 'कुबेरसेना' की दी हुई वसतिमें उतर गई 'कुबेरदत्ता' वहां रही हुई अपने समयको स्वाध्याय ध्यानसे व्यतीत करती है। 'कुबेरसेना' भी प्रतिदिन अपने पुत्रसे उत्पन्न हुवे उस स्तनधय पुत्रको लेकर 'कुबेरदत्ता के पास आती है और वहांपर उस बालकको खेलनेके लिए छोड़ देती है । एक दिन 'कुबेरदत्ता' ने विचार किया कि-बुध्येत यो यथाजन्तुस्तं तथा बोधयेदिति । यह विचार करके 'कुबेरदत्ता' उस बालकको मीठे मीठे शब्दोंसे संबोधित करके बुलाने लगी और कहती है कि हे बालक ! तू मेरा १ भाई लगता है, २ पुत्र लगता है, ३ देवर लगता है, ४ भतीजा लगता है, ५ चाचा लगता है और तू मेरा ६ पोताभी लगता है, इसतरह तेरे साथ मेरा ६ रिस्तोंका संबंध है और जो तेरा पिता है वह मेरा भी १ पिता है, मेरा २ भाई भी है, ३ दादा भी लगता है, ४ पति भी होता है, मेरा ५ पुत्र भी होता है और ६ श्वशुरभी लगता है। इन ६ नातोंका संबंध तेरे पिताके साथ भी है और ६ ही नाते तेरी मातासे भी लगते हैं, क्योंकि जो तेरी माता है वह मेरी भी १ माता लगती है, मेरी २ दादी भी लगती है, ३ भाबी भी लगती है, पुत्रकी ४ स्त्री भी लगती है, ५सासु लगती है और ६ सौकन भी लगती है। इससे. हे बालक ! प्रकार
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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