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________________ परिच्छेद. अठारा नाते. परन्तु मुझे गर्भापात कराना मंजूर नहीं । इस प्रकार कह कर गभंकी वेदनाओंको सहन करती हुई समय पूर्ण होनेपर उसने एक बड़े मनोहर युग्मको जन्म दिया, जिसमें एक लड़का और दूसरी लड़की थी । इस युग्मके पैदा होतेही उसकी माताने उसे कहा कि पुत्री ! यह युग्म अपत्य तुझे शत्रुके समान उत्पन्न हुआ है क्योंकि इन अपत्योंने तुझे गर्भ मेंही आनेपर मृत्युके दरवाजे तक पहुँचा दिया या फिर अब जीते हुवे इन अपत्योंसे सिवाय हानिके लाभ कुछ न होगा क्योंकि पहले तो ये तेरे स्तनोंका दूध पीकर तेरे योवनको हरन करेंगे और योबन हरन होनेसे वेश्या किसी कामकी नहीं, वेश्याओंके लिए योबन प्राणोंसे भी अधिक रक्षणीय है अत एव पुत्री ! हानिकारक इन बच्चोंपर तू मोह मत कर और मलमूत्रके समान इनको त्याग देनाही योग्य है । यह सुनकर वेश्या बोली माता! तुम कहती हो सो सत्य है परन्तु कुछ विलंब करो दश दिन मैं इन बच्चोंका पालन पोषन कर लूँ पश्चात् तुमारी मरजी होगी वैसा किया जायगा, बड़ी मुस्किलसे बुढियाने यह बात मंजूर की, वेश्या बड़ी प्रीतिसे उन बालकोंको स्तन्य पान कराती है और रातदिन उन्हें अपने प्राणोंसे भी प्यारे रखती है । इस प्रकार उन बालकोंको पालन होते हुवे उनकी कालरात्रिके समान उन्हे ग्यारवाँ दिन आ पहुँचा, 'वेश्या' ने 'कुबेरदत्ता' नामांकित दो अगूंठी बनवाई और उन दोनोकी अंगुलियोंमें पहनादी तत्पश्चात् एक बड़ा भारी काष्ठका संदूक बनवाया, उस संदूकके अन्दर दोनों बच्चोंको सुवा दिया और उनके आसपास संदूकमें बहुतसा धन भरके बड़े प्रयनसे बन्द करा कर यमुनाकी धासमें बहा दिया और कुबेरसेना' अपने नयनोले अश्रुधारा बहाती हुई घरपर लौट आई. क्योंकि 'कुबेरसेना' ने यह सब 10
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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