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________________ परिशिष्ट पर्व. छठा. भयानक 'अजगर' मुँह फाड़कर पड़ा है मानो उसे खानेके लिएही मुंह फाड़ रहा है, इसके अलावा कुवेके अन्दर बड़े भयंकर फनाओंको उठाये हुए चार 'सर्प' यमराजके वाणोंके समान फूंकार कर रहे हैं। कुवेके अन्दरकी यह हालत देख कर उस आदमीका कलेजा कॉप उठा अत एव वह इस भयंकर दृश्यको न देख सका उसने नीचेसे रष्टि हटा कर ऊपर वृक्षकी ओर देखा तो जिन साखाओंको वह पकड़ कर लटक रहाथा उन्हीं साखाओंको दो 'मूषक' चटक चटक काट रहे हैं एक स्याम वरणका और दूसरा श्वेत वरणका है । इधर हाथीने उस आदमीको न प्राप्त करके क्रोधान्ध होकर बड़के वृक्षको टक्कर मारी । बड़के वृक्षपर एक बड़ा भारी मधका पूड़ा लगा हुआ था । उस मधके पूड़ेपर लाखोंही मक्खियां बैठी हुई थीं, जिस वक्त वृक्षको हाथीकी टक्कर लगी उस वक्त मधके पूड़ेका सहत पीकर सबही मक्खियां उड़ने लगी और उस आदमीको लटकता देख चारों तरफसे उसके शरीरपर चिपट गई, वह विचारा मक्खियोंको उडानेमें असमर्थ था क्योंकि उसने दोनों हाथोंसे जकड़कर 'बड़' की साखाओंको पकड़ा हुआ था और 'कुवे' में रहे हुवे जो सर्प तथा यमराजके समान मुँह फाड़े हुवे 'अजगर' उसके गिरनेकी बाट देख रहे थे उनसेभी उसके हृदयमें भय कुछ कम न था । इस प्रकारकी महति विपत्तिमें पड़ा हुआ था इतनेमेंही मधके पूड़ेसे एक मधका बिन्द, उस आदमीके मस्तकपर आकर पड़ा और मस्तकसे ढलकता हुआ उसके मुंहमें जा गिरा, उस 'मधुविन्दू' को चाख कर भाग्य रहित वह आदमी अत्यन्त आनन्द मानने लगा और चारों ओरसे पूर्वोक्त प्रकारकी जो आपत्तियां सिरपर आ रही थीं उन्हें भूल गया । इस कथाका भाव
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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