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________________ 66.8.80 2-9899 ॥ छठा परिच्छेद - 11ate 399999998888866 ্য ਏਏਏਏਏਏ रातके समय जंबूकुमारका अपनी स्त्रियों के साथ विवाद और चोरी निमित्त प्रभवका आना. →XX...... सवालंकारोंसे विभूषित 'जंबूकुमार' अपनी पत्नियोंके साथ आवास गृहमें प्रवेश कर गया, यद्यपि 'जंबूकुमार' के पास विकारके हेतु उपस्थित हैं तथापि महाशय 'जंबूकुमार' का मन ऐसा निश्चल है कि कदाचित मेरुपर्वत चले परन्तु उस महात्माका मन लेशभरभी विचलीत न होवे बल्कि सावधान तया विशेष दृढ होता जाता है । इधर इसी भरतक्षेत्र में विन्ध्याचल के समीप जयपुर नामका एक बड़ा भारी नगर है उस नगर में 'विन्ध्य' नामा सजा राज्य करता है उस राजाके दो पुत्र हैं जिसमें बड़ेका नाम ' प्रभव' और छोटेका नाम 'प्रभु' है । एक दिन जयपुराधिपति 'विन्ध्य ' राजाने अपने बड़े पुत्र ' प्रभव' के होनेपर भी किसी हेतुसे अपने छोटे पुत्र 'प्रभु' को राज्यपाट दे दिया । यह बनाव देखकर ' प्रभव' प्रभव' के दिलमें क्रोधाग्नि बल उठी मारे अपमानके 'प्रभव' से
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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