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________________ ६० परिशिष्ट पर्व. [पांचवा उन्मूलन करनेमें प्रचंड वायुके समान ऐसे वचन मत बोल | हम तो यह विचार करते हैं कि तू बहुओंवाला होकर अपने पुत्ररूप रत्नको हमारी गोदमें बैठाकर हमारे मनोरथको पूर्ण करेगा और हे पुत्र ! यह समय तेरा दीक्षा लेनेका नहीं है परन्तु युवावस्थाके योग्य विषयजन्य सुख भोगनेका है । इस लिए तू इस सुखकी इच्छा क्यों नहीं करता ? | 'जंबुकुमार ' अपने ब्रह्मचर्य व्रतको प्रगट न करके बोला कि हे तात! संसारमें विषयजन्य सुख मुझे विषके समान मालूम होता है । संसारमें ऐसा कौन मूर्ख मनुष्य है कि जो जान बूझकर जहर खावे ? जिस प्रकार कैदी आदमीको जेलखाना दुःखजनक मालूम होता है वैसेही मुझे यह संसार मालूम होता है इसलिए आप मेरे ऊपर दया करके इस संसाररूप जेलखानेसे निकलने की आज्ञा दो । इस प्रकार 'जंबूकुमार' का अत्यंत आग्रह जानकर उसके मातापिता बोले कि हे वत्स ! यदि दीक्षा लेनेमें तेरा अत्यंतही आग्रह है तो हम तेरे मातापिता हैं हमारा इतना तो कहना मान ले कि जो हमने तेरे लिए आठ कन्यायें माँगी हुई हैं उनके साथ पानी ग्रहण करके हमारे मनोरथको पूर्ण कर दे और पश्चात् खुशीसे दीक्षा ग्रहण करनी बल्कि तेरे साथ हमभी इस असार संसारको त्यागकर दीक्षा लेंगे | यह सुनकर 'जंबूकुमार ' बोला हे तात! यदि आपकी आज्ञासे मैं यह कार्य करूँ तो पीछे भोजन से भूखे आदमीके समान मुझे दीक्षा लेनेसे न रोकना । मातापिताने यह बात स्वीकार करली और जो कन्यायें 'जंबूकुमार' के लिए माँगी हुईथीं उनके पिताओंसे जाकर यों बोले कि देखो भाई ! हमारा पुत्र विवाह करातेही संसारको छोड़कर दीक्षा लेलेगा और वह
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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