SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिच्छेद . ] अन्तिम केवली जंबूस्वामी. ५३ अभागिनीको पुत्ररत्नकी प्राप्ति होगी या नहीं ? इतनेमेंही 'सिद्धपुत्र यशोमित्र' बोल उठा कि हे भद्रे ! इस प्रकारके सावध प्रश्नको ऋषियों से पूछना योग्य नहीं क्योंकि महात्मा पुरुष सावद्य. वस्तुको जानते हुवे भी नहीं कथन करते, इसलिए हे कल्याणि ! गुरुमहाराजकी कृपासे यह बात तुझे मैंही बताऊँगा । इधर धर्मदेशना समाप्त होनेपर धीरस्वभाववाले गणधर भगवान श्री सुधर्मास्वामी तत्रस्थ एक शिलाके ऊपर बैठ गये और सिद्धपुत्र ' यशोमित्र' धारिणीसे कहने लगा कि हे भद्रे ! पुत्रोत्पत्ति के लिए जो तूने पूछा है उसका यह समाधान है कि जब तू रात्रिके समय स्वममें अपनी गोद में सिंहको बैठा हुआ देखेगी तब निश्चय समझ लेना कि तू अपनी कुक्षी में पुत्ररूपसिंहको धारण करेगी और गणधर भगवानने जिस प्रकार के जंबूवृक्षके गुण वरनन करे हैं वैसेही गुणोंको धारण करनेवाला और देवोंसे सानिध्य करानेवाला नव मास पूर्ण होनेपर जंबू नामा पुत्ररत्न उत्पन्न होगा । यह सुन मनमें आनन्दित होकर ' धारिणी' बोली हे सिद्धपुत्र ! यदि ऐसा है तो जंबूद्वीप के अधिष्ठाता देवताको उद्दिश्य के मैं एक सौ आठ आयंबिल करूँगी । इसतरहकी प्रतिज्ञा करके ' धारिणी ' गुरुमहाराजको भक्तिपूर्वक नमस्कार करके अपने पतिके साथ राजगृह नगर में आगई और सिद्धपुत्र भी वन्दन करके अपने स्थानपर चला गया । उस दिन से 'धारिणी' सिद्धपुत्रके वचनपर विश्वास रखकर आनन्दसे अपने समयको व्यतीत करती है, एक दिन रात्रि के समय सुखशय्यामें सोती हुई ' धारिणी' ने स्वममें श्वेत वरणवाले सिंहको अपनी गोद में बैठा देखा और तत्कालही निद्रा खुल जानेसे ' धारिणी' ने अपने पति के पास जाकर सब वृत्तान्त सुना दिया । 'ऋषभदत्त' बोला प्रिये !
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy