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________________ परिशिष्ट पर्व. [पहला उसने भक्तिपूर्वक वन्दन किया, 'भवदेव' बोला कि भद्रे ! यहांपर 'राष्ट्रकूट आर्यवान्' रहताथा और 'रेवती' नामकी उसकी धर्मपत्नी थी वे अभी जीते हैं या नहीं ? यह सुनकर उस स्त्रीने उत्तर दिया कि महाराज! उन्हें तो काल किये बहुत समय व्यतीत होगया, 'भवदेव' ने पूछा कि आर्यवानके पुत्र ‘भवदेव' ने.. जिस स्त्रीको छोड़कर दीक्षा ली थी वह स्त्री है या नहीं? यह सुनकर उस स्त्रीने विचार किया कि शायद हो न हो यह 'भवदेव' ही हो यह सोच कर वह बोली महाराज ! 'भवदेव' आपही हैं क्या ? 'भवदेव' बोला भद्रे तूने भलिभाँति मुझे पैछान लिया मैं वही 'भवदेव' हूँ जो अपनी स्त्री नागिलाको छोड़कर भवदत्तमुनि' के साथ चला गया था, स्त्री बोली महाराज ! यदि आपने उसे त्याग कर दीक्षा ग्रहण करली थी तो अब आपको यहां आनेका क्या कारण पड़ा ? 'भवदेव' बोला भद्रे ? उसवक्त मैंने दीक्षा भावसे ग्रहण न की थी केवल भाईकेही आग्रहसेमैंने दुष्कर व्रतको ग्रहण किया था और इसवक्त भाईकी मृत्यु होजानेसे मैं निरंकुश होकर उस 'नागिलाको' देखनेके लिए आया हूँ, (सज्जनो? यह स्त्री वही 'नागिला' है जिसे 'भवदेव' विवाहतेही छोड़ गया था और साधुपनेमेंभी जिसका रात दिन स्मरण किया करता था परंतु बारह वर्ष व्यतीत होजानेसे तथा रूपरंगमें फेरफार होजानेसे 'भवदेव' उसे अब पैछान न सका, 'नागिला' भी इस बातको समझ गई कि बहुत काल व्यतीत होनेसे तथा आयुके परिवर्तन होनेसे इसने मुझे पैछाना नहीं । 'नागिला' 'भवदेव' के मनोगत भावको जानकर उसे धर्ममें स्थिर करनेके लिए अपने आत्माको प्रगट करती हुई बोलि कि हे पवित्राशय! जिस
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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