SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिच्छेद.] प्रसन्नचंद्र राजर्षि और वल्कलचीरी. १९ योग होगया और मैंभी उस अपने छोटे भाईको प्राप्त न कर सका हा पितासे जुदा पड़ा हुआ वह विचारा " वल्कलचीरी" जलहीन मीनके समान कैसे जीवेगा? मैंने पिताके साथसे "वकलचीरी" का वियोग कराया यह बड़ा भारी अनुचित कार्य हुआ। हा, पिताको ऐसी घोर तपस्या में अब कौन आधारभूत होगा। इस प्रकार प्रसन्नचंद्र राजा मनमें बड़ा दुःखित हो रहाथा इधर वेश्याके घरपर “वल्कलचीरी" का विवाह होनेसे बाजे बज रहेथे बाजोंका आवाज सुनकर प्रसन्नचंद्र राजा बोला कि मेरे दुःखसे सारा नगर दुःखित होरहा है और यह ऐसा खुशी कौन है ? कि जिसके घरपर नौबतखाना बज रहा है । अथवा सब संसार मतलबका है कौन किसीके दुःख सुखमें स्यामिल होता है जैसे कि लौकिक कहावतभी है कि दुनिया दुरंगी मुकरबे सराय, कहीं खैर खूबी कहीं हाय हाय । यही आजका दिन मेरे लिए दुःखदाई और अन्यके लिए सुखदाई होरहा है। यों कहकर “राजा प्रसनचंद्र" मौन रह गया परंतु उसका यह कथन सारे नगरमें ऐसा फैल गया कि जैसे पानीके ऊपर तेलका बिंदु फैल जाता है । वेश्याकोभी यह बात मालूम होगई कि, राजाके चित्तमें किसी प्रकारका खेद है और मेरे घरपर बजते हुए बाजोंसे राजाको बिलकुल नफरत होती है । अत एव वेश्याने शीघ्रही राजसभामें जाकर राजासे यह निवेदन किया कि, स्वामिन् ! प्रथम मेरे यहां निमित्तको जाननेवाला एक आदमी आयाथा उसने मुझे कहाथा कि, ऋषिवेषमें और व्यवहारको न जाननेवाला जो कोई पुरुष तेरे मकानपर आवे तो उसके साथ अपनी लड़कीको व्याह देना और वह निमित्तियेका बताया हुआ युवा पुरुष व्यवहारको न जाननेवाला आज मेरे घर आया है और उसके साथ मैंने अपनी लड़कीका --
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy