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________________ परिशिष्ट पर्व. [पहला भाई वल्कलचीरीका चित्र खींचलाओ । चित्रकार राजाकी आज्ञा मस्तकपर चढ़ाकर चित्रके लिखनेकी सामग्री लेकर जंगलको चलदिया और सोमचंद्र तापसके पाद पद्मोंसे पवित्र जो वन था वहां पर जापहुँचा। वल्कलचीरीका चित्र उस चित्रकारने ऐसी खूबीसे लिखा कि उस चित्रमें केवल बोलनेकीही त्रुटिथी । साक्षात् वल्कलचीराके प्रतिबिंबके समान उस चित्रको लेकर चित्रकार राजसभामें आया और वह मनोहर चित्र राजा प्रसन्नचंद्रको समर्पित कर दिया उस रमणीय चित्रको देखकर राजा प्रसन्नचंद्र मनमें बड़ा हर्षित होकर विचारता है कि यह चित्र कुछ पिताके चेहरेके साथही मिलता है अत एव शास्त्रकारोंका जो यह कथन है किआत्मा वैजायते पुत्रः श्रुतिरेषाहि नान्यथा । सो सत्यही है, प्रसन्नचंद्र उस मनोज्ञ चित्रकी ओर टकटकी लगाकर देखता रहा परंतु वल्कलचीरीके वल्कल (वृक्षकी छाल)के वस्त्र देखकर प्रसन्नचंद्रके नेत्रोंमें अश्रुभर आये और मनमें विचार करने लगा कि खैर अब पिताकी तो वृद्धावस्था है अत एव उन्हें संन्यस्त उचितही है परंतु ऐसी युवावस्थामें मेरा छोटा भाई अरण्यमें रहकर कष्टको सहन करे और मैं राज्यसंवधि सुखरूप सरोवरमें हंसके समान मग्न रहूँ यह सर्वथाही अनुचित है, परंतु वनवासी जीवोंके समान व्यवहारको न जाननेवाले लघु भ्राता वल्कलचीरीको शहरमें लाना यहभी बड़ाही दुष्कर कार्य है और उसके विना मुझे राज्यमेंभी कष्ट है । इसतरह प्रसन्नचंद्र राजाने अनेक प्रकारके संकल्पविकल्प करके एक उपाय शोध निकाला । पोतना पुरमें जो बड़ी बड़ी चतुरा वैश्यायें थीं उन्हें बुलवाया और उनको यह आज्ञा देदी कि तुम मुनिवेष धारण करके और कुछ खाँडके लड्डू लेकर उस
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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