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________________ - ११:० zpatha 2963 || पंदखाँ परिच्छेद || सपरिवार जंबू कुमारकी दीक्षा और निर्वाण. SRAS हुआ ठोंही स्त्रियोंने जंबूकुमार के मनको सुमेरु पर्वत के समान निश्चल समझकर विनयसे नम्र होकर यह विज्ञप्ति की - स्वामिन्! यदि आप ऐसाही दृढ़ निश्चय करके बैठे हो तो फिर हमारा भी कल्याण करो क्योंकि, कहावत है किनात्मकुक्षिम्भरिलेन सन्तुष्यन्ति महाशयाः । 'जंबूकुमार ' बोला- यदि तुम मेरे ऊपर भक्तिवाली हो तो खुशी से तुम भी गुरुमहाराजके पास दीक्षा लेकर अपनी आत्माका उद्धार करो। 'जंबूकुमार' ने रातभर अनेक प्रकार के दृष्टान्त देकर अपनी आठोंहीं स्त्रियोंको वोध किया । ' प्रभव' वोला- हे मित्र ! मैं भी अपने मातापितासे पूछकर आपकी दीक्षामें सहायक बनूँगा । 'जंबूकुमार ' बोला- सखे इस कार्य में बिलंब नहीं करना । प्रातःकाल होनेपर 'जंबूकुमार' के विचार अटल समझकर उसके माता-पिता, सासु-सुसरे और अन्य भी स्वजन संबंधि 'जंबूकुमार' को बोले- महाशय ! यदि तुमारा विचार संसारको त्यागने का है तो हम तुमारे कार्यमें विन्न करना नहीं
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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