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________________ परिशिष्ट पर्व. १६२ [चौदहवाँ.. गया हुआ था, इस लिए 'राजमहल' उस दिन शून्यसा मालूम होता था, अत एव रानी 'ललिता' का दाव लग गया। उसने दासीको आज्ञा की कि जा अब अवसर है यदि तेरेमें कुछ चतुराई है तो उस पुरुषको अन्तेउरमें ले आ । दासी इन बातोंमें बड़ी दक्षा थी वह अवसर पाकर 'ललिताङ्ग' को देवकुमारके समान सजाकर पालकीमें बैठाके अन्तेउरमें ले आई। पालकीको लाते समय जो रास्तेमें राजपुरुष मिले उनसे दासीने कह दिया कि रानीको क्रीड़ा करनेके लिए नवीन यक्षकी मूर्ति लाई हूँ । रातका समय था कइ एक राजपुरुषोंके मनमें शंका तो पैदा हुई मगर यह रानीकी आज्ञासे लाई है यह समझकर उसे निर्णय करनेके लिए कोई भी देख न सका । दासी निःशंक होकर 'ललिताङ्ग' को महलमें रानीके पास ले आई । 'ललिताङ्ग' को देखकर 'ललिता' ऐसी प्रफुलित होगई जैसे चन्द्रमाको देखकर 'कुमुदिनी' खिल जाती है । रानी 'ललिता' ने 'ललिताङ्गको बड़ा सन्मान दिया और जैसे वर्षाऋतुमें वृक्षको लता आलिङ्गन करती है वैसेही रानी 'ललिता' ने 'ललिताङ्ग' को आलिङ्गन कर अपने मनोर्थको पूर्ण किया। दासी पालकीमें बैठा कर जब 'ललिताङ्ग' को यक्षकी मूर्तिके बहानेसे लाई थी तब पहरेदारोंके मनमें शंका हुई थी, मगर रानीके डरसे वे कुछ बोल न सके थे, अब पीछेसे उनके मनमें बड़ी चिन्ता हुई कि यदि अन्तेउरमें परपुरुषका प्रवेश होगया और राजाको मालूम होगया तो यमराजके समानही राजा हमें प्राणापहारकी शिक्षा देगा। पहरेदार यह विचार करही रहे थे इतनेमें तो राजा भी कौमुदी महोत्सव देखकर पीछे लौट आया। पहरेदारोंने हाथ जोड़कर राजासे कहा-महाराज ! हमारा कमूर माफ़ हो हमें
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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