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________________ -*॥ चैौदहवाँ परिच्छेद ॥ 9928 नागश्री - ललितांग. 992886 मणीय नामा नगर में कथाप्रिय नामका एक राजा राज्य करता था, वह राजा कथा सुननेका बड़ा रसिक था, अत एव उसने कथा सुननेके लिए नगरवासि मनुष्यों में वारा बाँध दिया था, जिसका वारा आता उसेही राजाको कथा सुनानेको जाना पड़ता । उसी नगरमें बहुत गरीब एक ब्राह्मण रहता था, वह विचारा सारे दिन भटक भटकके भिक्षाद्वारा अपना निर्वाह करता था और पढ़ने लिखनेमें तो उसे धौलेपे काला भी करना न आता था । क्रमसे एक दिन कथा कहनेका वारा उस निरक्षर ब्राह्मणकाही आ गया । उस ब्राह्मणको कल क्या खाया था और क्या काम किया था इतने तक भी याद न रहता था, तो फिर कथा कहनेकी तो कथाही क्या ? इसलिए वह बिचारा शोकसमुद्रमें मन होगया और विचारने लगा कि मेरी जीभ मेराही नाम लेते हुए तुतलाती है तो राजाके सामने तो बोलनाही दुस्कर है और मुझे
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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