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________________ १४८ परिशिष्ट पर्व. [बारहवाँ हाया, मगर वह बन्दा ज्यूंसे त्यूं न हुआ । इसी तरहसे प्राय वडुवाके समान जो तुम हो तुमारे अन्दर रागवान होकर मैं उस मूढके समान नीच कमें उपार्जन करना नहीं चाहता, इसलिए कल्पित युक्तियोंसे सरा, मैं अपने कार्यसे कभी भी विचलित. न हूँगा। ___'कमलवती' कहने लगी-नाथ ! मा साहस 'शकुनि' के समान आप इतना साहस मत करो । जैसे एक गाँवमें कोई एक आदमी रहता था । दुष्काल पड़नेपर वह विचारा अपने खजन संबंधियोंको छोड़के अपना निर्वाह करनेके लिए किसी एक सार्थवाहके साथ परदेशको चल पड़ा । जब बहुतसी दूर सार्थ चला गया तब एक महा अटवी आगई । सार्थने उस अटवीमें पड़ाव डाल दिया और सब अपने अपने खाने पीनेके लिए बंदोबस्त करने लगे । वह आदमी भी जंगलमें लकड़ियां लेनेको निकल पड़ा जो उस सार्थके साथ आया था। ___ जंगलमें जाकर उसने एक व्याघ्रको मुँह फाड़कर सोते हुए देखा, उस व्याघ्रकी दाढाओंमें कुछ मांसका अंश लगा हुआ था । पासमेंही एक वृक्षके ऊपर एक 'शकुनि' पक्षी बैठा था, 'शकुनि' पक्षी सोते हुए उस व्याकघ्र मुंहमेंसे बारंबार मांस निकाल कर वृक्षपर बैठके खाता था और खाते समय यह बो. लता जाता था कि-मा साहसं कुरु मा साहसं कुरु । यह सब देखकर वह आदमी चकित होगया क्योंकि जैसा वह 'शकुनि' पक्षी बोलता था वैसाही उससे विपरीत करता था । साश्चर्य होकर वह आदमी बोला-अरे मूढ ! तू कहता है कि साहस मत कर और तूही जंगलके अन्य भक्षोंको छोड़कर और आपने प्रागोंको भी कुछ न समझकर व्याघ्रके मुंहमेंसे मांस निकालकर
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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