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________________ Contro १ ॥ बारहवाँ परिच्छेद ॥ lowerramenog ब्राह्मणपुत्र और एक शकुनि. किसी एक नगरमें एक जमीनदारके यहां एक बड़ी कीमती FREE और सुन्दर घोड़ी थी, उस घोड़ीकी पालना वह जमीनदार अपनी पुत्रीसे भी अधिक करता था, उस घोड़ीकी सारसंभालके लिएही सोल्लक नामका एक नौकर भी रक्खा हुआ था, जब वह जमीनदार उस घोड़ीके लिए गुड़, घी आदि रातब उस सोल्लकको दिया करता तब 'सोल्लक' उसमेंसे थोडासा घोड़ीको देकर बाकी अपने घरपे लेजाता । इस प्रकार घने दिन बिताते हुए 'सोल्लक' ने ऐसा कर्म उपार्जन कर लिया । जिससे उसे भवान्तरमें उस घोड़ीके जीवका सेवक बनकर उसका हक अदा करना पड़े। 'सोल्लक' अपनी आयुको पूर्णकरके उस वंचन कर्मके प्रभावसे काल करके चिरकालतक संसारमें तिर्यग्गतिमें परिभ्रमण करके 'क्षितिप्रतिष्ठान' नगरमें सोमदत्त ब्राह्मणकी भार्या सोमश्रीकी कुक्षिमें पुत्रपने आकर पैदा हुआ । इधर वह घोड़ी भी वहाँसे काल धर्मको प्राप्त होकर अरण्यके मार्गमें मूढ आदमीके समान संसारमें परिभ्रमण करती हुई उसी क्षितिप्रतिष्ठान नगरमें 'कामपताका' वेश्याके पुत्रीपने पैदा हुई । 'कामपताका'
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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