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________________ १४० परिशिष्ट पर्व. [ग्यारवा. इस राजाकी आज्ञा मानते हुए दुःख होता है, परन्तु करें क्या पुन्यवानके सामने बलवान भी निर्बल होजाते हैं । दैवयोग उन राजाओंको यह मालूम हो गया कि इस घोड़ेके प्रभावसेही. इस राजाकी राज्यलक्ष्मी बढ़ती जाती है और हम भी घोड़ेके प्रभावसे परास्त किये गये हैं, जबतक यह घोड़ा इसके यहां रहेगा वब तक यह राजा सर्वोपरि राज्यलक्ष्मीको भोगेगा। जो राजा इस राजासे पहलेसेही विरोधी थे और जो इस वक्त उसकी संपदाको देखके ईर्षा करते थे, उन सबने मिलकर यह विचार किया कि इस घोड़ेका किसी तरह हरन करना चाहिये अथवा मरवा देना चाहिये । यदि ऐसा न किया जायगा तो यह राजा थोड़ेही समयमें सारी पृथ्वीका मालिक होजायगा । यह कार्य करने के लिए कै आदमियोंको पूछा गया परन्तु किसी भी पुरुषकी इस दुस्कर कार्य करनेको छाती न ठुकी। . एक बड़ा वाचाल और धूर्त शिरोमणी मंत्री था, वह यह बात सुनकर बोला-क्या इस कार्यको तुम लोग दुस्कर समझते हो लो मैं करूँगा इस कार्यको, पुरुषार्थ से क्या नहीं सिद्ध होता? पुरुषार्थकी अनन्त शक्ति है । देखो मैं थोड़ेही दिनोंमें इस अश्वको हरन कर लाता हूँ। यह कहकर वह मंत्री कपटसे श्रावकका वेष धारण करके 'वसन्तपुर' नगरमें आया और नगरके जिनमन्दिरोंमें नमस्कार करके साधुओंके पास उपाश्रयमें वन्दन करनेको गया, साधुओंको वन्दन करके पूछता पूछता जिनदास श्रेष्ठिके घरपर गया, जिनदासके घरपे. एक छोटासा जिनालय था वहां जाकर वह कपटी श्रावक जिनप्रतिमाओंको नमस्कार करने लगा । 'जिनदास' उस परदेशी श्रावकको देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ । गृह जिनालयसे निकलकर उस दंभी
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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