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________________ FREEEEEEENA o -* नवमाँ परिच्छेद ॥HTTER मेघरथ और विद्युन्माली. रतक्षेत्रके मध्य भागमें 'वैतान्य' नामका एक पर्वत है उस पर्वतके उत्तर और दक्षिण इन दो श्रेणियोंमें विद्याधर लोग रहते हैं, उ. त्तर श्रेणीमें देवताओंको भी बड़ा वल्लभ ऐसा 'गगनवल्लभ' नामका विद्याधरोंका एक बड़ा विशाल नगर है । उस नगरमें परस्पर स्नेहवाले और दोनों सगे भाई 'मेघरथ' और 'विद्युन्माली' नामके दो विद्या घरके लड़के रहते थे। एक दिन उन दोनोंने विचार किया कि चलो भाई अपने दोनो जने भरतक्षेत्रमें जाकर अपनी विद्या सिद्ध करें। विद्या सिद्ध करनेका विधि यह था, भरतक्षेत्रमें जाकर अति नीच कुलमें पैदा हुई कन्याओंसे विवाह करके एक वर्ष परियन्त ब्रह्मचर्य व्रतका पालन करे तब विद्या. सिद्ध होसकती थी । 'मेघरथ' और 'विद्युन्माली' दोनों भाई गुरुकी आजा लेकर भरवक्षेत्रमें 'वसन्तपुर नाम नारमें आये । 'चमत्त पुर' नगरमें आकर उन दोनोंने चाण्डालका वेष धारण कर
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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