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________________ परिच्छेद.. . नूपुर पंडिता. हाथीको अन्तेउरमें लेजाकर रानियोंसे कहा कि मुझे आज रातको खन आया है इस लिए मेरे सामने तुम सबही शरीरसे वस्त्र उतारके क्रमसे इस हाथीके ऊपर चढ़ो । राजाकी इस प्रकार आज्ञा पाकर सब रानियोंने अपने तनसे वस्त्र उतार दिये, क्योंकि सती स्त्रियोंको पतिआज्ञा बलीयसी होती है पति चाहे जैसी आज्ञा करे परन्तु पतिव्रता स्त्रीका धर्म है कि वह अपने पतिको प्रसन्न रखनेके लिए वैसाही करे । उन रानियोंमेंसे एक रानि बोली-मैं इसपर नहीं चढूँगी मुझे तो इससे बड़ा डर लगता है। यह सुनकर राजाको बड़ा गुस्सा आया उस वक्त राजाके हाथमें एक फूलोंका गुच्छा था, राजाने वही उस रानीके फेंककर मारा । फूलोंका गुच्छा लगतेही रानी मूर्छा खाकर जमीनपर गिर पड़ी। राजाने उस रानीकी यह चेष्टा देखकर अपने मनमें निश्चय कर लिया कि जो इस प्रकार फैल भरती है और इस काष्ठके हाथीसे डरके इसके ऊपर नहीं चढ़ती तो अवश्यमेव यह वही दुराचारिनी है जो रातको हाथीवानके पास जाती है । राजाने शीघ्रही उसके शरीरसे वस्त्र बैंच लिया और शृंखलाओंकी मारसे लाल मूर्ख हुई उसकी कमरको देखा । उसके शरीरकी यह हालत देखकर राजा मुस्कराकर बोला-अरे रंडे ! मदोन्मत्त हाथीके साथ क्रीड़ा करती है और इस काष्ठके हाथीसे डरती है । हाथीके बाँधनेकी श्रृंखलाओंकी मारसे आनन्दित होती है और फूलोंके गुच्छेकी मारसे मूर्छित होती है। ... यह कहकर राजा क्रोधाग्निसे जलता हुआ महलसे बाहर निकल गया । कचहरीमें जाकर राजाने हाथीवानको बुलवाया और उसे यह आज्ञा दी कि अमुक रानीको ‘राजवल्लभ' हाथीपर चढ़ाके वैभारगिरि ऊपर लाओ हम वहां जाते हैं। राजाका
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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