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________________ ९८ परिशिष्ट पर्व. [आठवाँ तो 'देवदत्त' सुनार के लड़केकी स्त्री है और भीड़ी गली के पास इसका घर है अभी थोड़े ही दिन हुवे इसका विवाह हुआ है इसके विवाह समय तो बड़ी धूमधाम हुई थी । यह सुनकर वह युवा पुरुष कुछ और भी उनके लिए बेर तोड़के अपने रस्ते पड़ा । ' दुर्गिला ' भी स्नानक्रीडाको छोड़के हृदयमें उस पुरुषका ध्यान करती हुई अपने मकान पर चली गयी परन्तु मन उसका उस युवा पुरुषही रहा । इधर वह 'नव युवक' भी अपने घर जाकर रातदिन इसी बुना उधेड़ी में लगा रहता है कि किस दिन, किस रातको और किस जगह उस सुन्दरीके साथ मेरा मिलाप हो । 'दुर्गिला' के भी हृदयमें रातदिन यही चुटपुटी लग रही है कि Satara समय हो ? जिस समय उस ' नव युवक' के साथ समागम होवे । इस प्रकार आशालताको बढाते हुवे उन दोनों को बहुतसा समय व्यतीत होगया, एक दिन एक बुड्ढी 'तापसनी ' उस युवा पुरुषके घरपर भिक्षा लेनेके लिए आई, उस जोगनको देख नव युवक विचारा कि यदि हमारी कार्यसिद्धि होसके तो . इस जीगनसे होसकती है वरना और कोई उपाय नहीं सूझता । - यह समझकर उस ' बुढिया जोगन' को बहुतसा खानपान दिया और कहा कि माई मेरा कुछ कार्य है और वह कार्य तेरेसे होनेवाला है यदि उस कार्यको करेगी तो कार्यके होनेपर तुझे अच्छी तरह खुश करूँगा, यह कहकर उस नव युवकने अपना कार्य निवेदन कर दिया और कहा कि मेरे ऊपर उस स्त्रीका बड़ा अनुराग है इस लिए तू वहांपर जा और उससे यह खबर ला कि उसका विचार मुझसे मिलनेका है या नहीं ? और है तो कहांपर मिलना होसकता है ? और किस दिन ? । 'जोगन' स्वीचरित्र और - दूती कर्म करनेमें बड़ी निपुण थी अत एव वह उस कार्यको अं
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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