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________________ . ९.. परिशिष्ट पर्व. सातवाँ हुआ थोड़ेही समयमें महासागरमें जा पड़ा । पानीकी तरंगोंके झकोलेसे वह करिकलेवरका गुदाद्वार कुछ नम होकर खुल गया, रास्ता मिलनेसे वह 'कौवा' बाहर निकला और देखता है तो चारों तर्फ कोसोंतक जलही जल देख पड़ता है। केवल उस हाथीका कलेवरही नावके समान जलपर तर रहा है, किसी तर्फ भी तट नजर नहीं आता । यह दृश्य देखकर कौवेके होस हवास उड़ गये, घने दिनसे उड़नेका अभ्यास न होनेसे अब वह ताकात न रही थी कि जो दश-बीस कोसतक उड़कर जासके तथापि साहस करके वहांसे उड़ा, कुछ दूरतक. उड़कर गया परन्तु दूरतक तट नजर न आनेसे पीछेही आकर उसी तरते हुवे करिकलेवरपर बैठ गया, इसी प्रकार कई दफ़े साहस करके उड़ा परन्तु सफलता न प्राप्त करके वहांही आ बैठता है । अब गुदाद्वार खुलनेपर हाथीका कलेवर पानीसे भरने लगा, कुछ देरके बाद पानी भर जानेसे भारी होनेके कारण वह करिकलेवर समुद्रमें डूब गया और उस कलेवरके डूब जानेपर उस बिचारे कौवेने भी निराश्रित होकर अपने प्राणोंका त्याग कर दिया । हाथीके कलेवरके समान संसारमें स्त्रियां हैं, संसार महासागर है और कौवेके समान विषयवासनारूप मूके कलेवरमें आसक्त हुआ हुआ यह सांसारिक जीव है । इस लिए मैं तुमारे विषय रागवान होकर उस कौवेके समान संसारसागरमें डूबना नहीं चाहता। _ 'पद्मश्री' बोली-स्वामिन् ! आप हमें त्यागकर वानरके समान अत्यन्त पश्चात्तापको प्राप्त होवोगे । एक अटवीमें एक वानर और वानरी रहते थे, उन दोनोंमें परस्पर बड़ा अनुराग था अत एव नित्यही विरह वर्जित रहते थे। जब उनको भूख ल
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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