SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निर्जराधिकार सर्व भावों के प्रति सद्दृष्टि हैं असंमूढ़ हैं। अमूढदृष्टि समकिती वे आतमा ही जानना। जो चेतयिता आत्मा सभी धर्मों के प्रति जुगुप्सा (ग्लानि) नहीं करता; उसको निर्विचिकित्सा अंग का धारी सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए। जो चेतयिता आत्मा समस्त भावों में अमूढ़ है, यथार्थ दृष्टिवाला है; उसको निश्चय से अमूढदृष्टि अंग का धारी सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए। (२३३-२३४) जो सिद्धभत्तिजुत्तो उवगृहणगो दु सव्वधम्माणं। सो उवगृहणकारी सम्मादिट्ठी मुणेदव्वो।। उम्मग्गं गच्छतं सगं पि मग्गे ठवेदि जो चेदा। सो ठिदिकरणाजुत्तो सम्मादिट्ठी मुणेदव्वो।। जो सिद्धभक्ति युक्त हैं सब धर्म का गोपन करें। वे आतमा गोपनकरी सद्दृष्टि हैं यह जानना ।। - उन्मार्गगत निजभाव को लावें स्वयं सन्मार्ग में। वे आतमा थितिकरण सम्यग्दृष्टि हैं यह जानना।। जो चेतयिता सिद्धों की भक्ति से युक्त हैं और परवस्तुओं के सभी धर्मों को गोपनेवाला है; उसको उपगूहन अंग का धारी सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए। जो चेतयिता उन्मार्ग में जाते हुए अपने आत्मा को सन्मार्ग में स्थापित करता है, वह स्थितिकरण अंग का धारी सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए। (२३५-२३६) जो कुणदि वच्छलत्तं तिण्हं साहूण मोक्खमग्गम्हि । सो वच्छलभावजुदो सम्मादिट्ठी मुणेदव्वो। विज्जारहमारूढो मणोरहपहेसु भमइ जो चेदा। सो जिणणाणपहावी सम्मादिट्ठी मुणेदव्वो॥
SR No.032006
Book TitleGatha Samaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2009
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy