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________________ संवराधिकार ५७ पूर्वकथित मोह-राग-द्वेष रूप आम्रवभावों के हेतु मिथ्यात्व, अज्ञान, अविरतभाव और योग-ये चार अध्यवसान हैं - ऐसा सर्वदर्शी भगवानों ने कहा है। हेतुओं का अभाव होने से ज्ञानियों के नियम से आस्रवभावों का निरोध होता है और आस्रवभावों के अभाव से कर्मों का भी निरोध होता है। कर्म के निरोध से नोकर्मों का निरोध होता है और नोकर्मों के निरोध से संसार का निरोध होता है। . (रोला) अबतक जो भी हुए सिद्ध या आगे होंगे। महिमा जानो एकमात्र सब भेदज्ञान की॥ और जीव जो भटक रहे हैं भवसागर में। भेदज्ञान के ही अभाव से भटक रहे हैं॥१३१|| भेदज्ञान से शुद्धतत्त्व की उपलब्धि हो। शुद्धतत्त्व की उपलब्धि से रागनाश हो। रागनाश से कर्मनाश अर कर्मनाश से। ज्ञान ज्ञान में थिर होकर शाश्वत हो जावे||१३२।। आजतक जो कोई भी सिद्ध हुए हैं; वे सब भेदविज्ञान से ही सिद्ध हुए हैं और जो कोई बँधे हैं; वे सब उस भेदविज्ञान के अभाव से ही बँधे हैं। भेदविज्ञान प्रगट करने के अभ्यास से शुद्धतत्त्व की उपलब्धि हुई; शुद्धतत्त्व की उपलब्धि से रागसमूह का प्रलय हुआ, रागसमूह के विलय करने से कर्मों का संवर हुआ और कर्मों का संवर होने से ज्ञान में ही निश्चल हुआज्ञान उदय को प्राप्त हुआ। निर्मल प्रकाश और शाश्वत उद्योत वाला वह एक अम्लान ज्ञान परमसन्तोष को धारण करता है। __... -समयसार कलश पद्यानुवाद
SR No.032006
Book TitleGatha Samaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2009
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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