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________________ आगमों का भी आगम भगवान आत्मा के स्वरूप का प्रतिपादक ग्रन्थाधिराज समयसार जिनागम का अजोड़ रत्न है, सम्पूर्ण जिनागम का सिरमौर है। ___ आचार्य अमृतचन्द्र इसे जगत का अद्वितीय अक्षय चक्षु कहते हैं और कहते हैं कि जगत में इससे महान और कुछ भी नहीं है। 'इदमेकं जगच्चक्षुरक्षयम्', 'न खलु समयसारादुत्तरं किंचिदस्ति" - आचार्य अमृतचन्द्र की उक्त सूक्तियाँ समयसार की महिमा बताने के लिए पर्याप्त हैं। समयसार का समापन करते हुए आचार्य कुन्दकुन्द स्वयं लिखते हैं कि जो आत्मा इस समयसार नामक शास्त्र को पढ़कर, इसमें प्रतिपादित आत्मवस्तु को अर्थव तत्त्व से जानकर उस आत्मवस्तु में स्थित होता है, अपने को स्थापित करता है; वह आत्मा उत्तम सुख को प्राप्त करता है अर्थात् अनन्त अतीन्द्रिय आनन्द को प्राप्त करता है। यह ग्रन्थाधिराज अत्यन्त क्रान्तिकारी महाशास्त्र है। इसने लाखों लोगों के जीवन को अध्यात्ममय बनाया है, मत-परिवर्तन के लिए बाध्य किया है। कविवर पण्डित बनारसीदासजी, श्रीमद्रायचन्द्रजी एवं आध्यात्मिकसत्पुरुष श्रीकानजीस्वामीको इसनेही आन्दोलित कियाथा।उक्त महापुरुषों के जीवन को आमूलचूल परिवर्तित करनेवाला यही ग्रन्थराज है। इसके संदर्भ में श्री कानजी स्वामी कहते हैं कि यह समयसार शास्त्र आगमों का भी आगम है, लाखों शास्त्रों का सार इसमें है । यह जैनशासन का स्तम्भ है, साधकों की कामधेनु है, कल्पवृक्ष है। इसकी हर गाथा छटवेंसातवें गुणस्थान में झूलते हुए महामुनि के आत्मानुभव में से निकली हुई है। __इस ग्रन्थाधिराज का मूल प्रतिपाद्य नवतत्त्वों के निरूपण के माध्यम से नवतत्त्वों में छिपी हुई परमशुद्धनिश्चयनय की विषयभूत वह आत्मज्योति है, जिसके आश्रय से निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की प्राप्ति होती है। १. आत्मख्याति टीका, कलश २४५ २. आत्मख्याति टीका, कलश २४४ --समयसार अनुशीलन भाग १ से साभार
SR No.032006
Book TitleGatha Samaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2009
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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