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________________ कर्ताकर्माधिकार को भी नहीं करता; किन्तु जीव घट-पट को करने के विकल्पवाले अपने योग और उपयोग का कर्ता अवश्य होता है। (१०१) जे पोग्गलदव्वाणं परिणामा होंति णाणआवरणा। ण करेदि ताणि आदा जो जाणदि सो हवदिणाणी।। ज्ञानावरण आदिक जु पुद्गल द्रव्य के परिणाम हैं। उनको करे ना आतमा जो जानते वे ज्ञानि हैं।। ज्ञानावरणादिक पुद्गल द्रव्यों के जो परिणाम हैं, उन्हें जो आत्मा करता नहीं है, परन्तु जानता है; वह आत्मा ज्ञानी है। . (१०२) जं भावं सुहमसुहं करेदि आदा स तस्स खलु कत्ता। तं तस्स होदि कम्मं सो तस्स दु वेदगो अप्पा। निजकृत शुभाशुभभाव का कर्ता कहा है आतमा। वे भाव उसके कर्म हैं वेदक है उनका आतमा॥ आत्मा जिस शुभ या अशुभ भाव को करता है, उस भाव का वह वास्तव में कर्ता होता है और वह भाव उसका कर्म होता है तथा वह आत्मा उस भाव का भोक्ता भी होता है। (१०३-१०४) । जोजम्हि गुणे दव्वे सो अण्णम्हि दुण संकमदि दव्वे । सो अण्णमसंकंतो कह तं परिणामए दव्वं ।। दव्वगुणस्सय आदाण कुणदिपोग्गलमयम्हि कम्मम्हि । तं उभयमकुव्वंतो तम्हि कहं तस्स सो कत्ता। जब संक्रमण ना करे कोई द्रव्य पर-गुण-द्रव्य में। तब करे कैसे परिणमन इक द्रव्य पर-गुण-द्रव्य में| कुछ भी करे ना जीव पुद्गल कर्म के गुण-द्रव्य में। जब उभय का कर्ता नहीं तब किसतरह कर्ता कहें?||
SR No.032006
Book TitleGatha Samaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2009
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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