SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवाजीवाधिकार ( ४६ ) ववहारस्स दरीसणमुवएसो वण्णिदो जिणवरेहिं । जीवा एदे सव्वे अज्झवसाणादओ भावा ।। ये भाव सब हैं जीव के जो यह कहा जिनदेव ने । व्यवहारनय का पक्ष यह प्रस्तुत किया जिनदेव ने || 'ये सब अध्यवसानादिभाव जीव हैं' - इसप्रकार जो जिनेन्द्रदेव ने उपदेश दिया है, वह व्यवहारनय दिखाया है । ( ४७-४८ ) राया हु णिग्गदो ति य एसो बलसमुदयस्य आदेसो । ववहारेण दु उच्चदि तत्थेक्को णिग्गदो राया ॥ एमेव य ववहारो अज्झवसाणादि अण्णभावाणं । जीवो त्ति कदो सुत्ते तत्थेक्को णिच्छिदो जीवो ।। सेना सहित नरपती निकले नृप चला ज्यों जन कहें। यह कथन है व्यवहार का पर नृपति उनमें एक है | बस उसतरह ही सूत्र में व्यवहार से इन सभी को । जीव कहते किन्तु इनमें जीव तो बस एक है । सेना सहित राजा के निकलने पर जो यह कहा जाता है कि 'यह राजा निकला', वह व्यवहार से ही कहा जाता है; क्योंकि उस सेना में वस्तुतः राजा तो एक ही होता है । इसीप्रकार अध्यवसानादि अन्य भावों को 'ये जीव हैं' - इसप्रकार जो सूत्र (आगम) में कहा गया है, वह व्यवहार से ही कहा गया है। यदि निश्चय से विचार किया जाये तो उनमें जीव तो एक ही है। अरसमरूवमगंधं जाण ( ४९ ) अव्वत्तं १५ अलिंगग्ग्रहणं चेदणागुणमसद्दं । जीवमणिद्दिट्ठसंठाणं ।।
SR No.032006
Book TitleGatha Samaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2009
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy