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________________ ११४ गाथा समयसार आयासं पि ण णाणं जम्हायासं ण याणदे किंचि । तम्हायासं अण्णं अण्णं णाणं जिणा बेंति ।। णज्झवसाणं गाणं अज्झवसाणं अचेदणं जम्हा । तम्हा अण्णं णाणं अज्झवसाणं तहा अण्णं ।। जम्हा जाणदि णिच्चं तम्हा जीवो दु जाणगो णाणी । णाणं च जाणयादो अव्वदिरित्तं मुणेयव्वं ।। णाणं सम्मादिट्ठि दु संजमं सुत्तमंगपुव्वगयं । धम्माधम्मं च तहा पव्वज्जं अब्भुवंति बुहा ।। शास्त्र ज्ञान नहीं है क्योंकि शास्त्र कुछ जाने नहीं । बस इसलिए ही शास्त्र अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ॥ शब्द ज्ञान नहीं है क्योंकि शब्द कुछ जाने नहीं । बस इसलिए ही शब्द अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ॥ रूप ज्ञान नहीं है क्योंकि रूप कुछ जाने नहीं । बस इसलिए ही रूप अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ॥ वर्ण ज्ञान नहीं है क्योंकि वर्ण कुछ जाने नहीं । बस इसलिए ही वर्ण अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ॥ गंध ज्ञान नहीं है क्योंकि गंध कुछ जाने नहीं । बस इसलिए ही गंध अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ॥ रस नहीं है ज्ञान क्योंकि रस भी कुछ जाने नहीं । बस इसलिए ही रस अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ॥ स्पर्श ज्ञान नहीं है क्योंकि स्पर्श कुछ जाने नहीं । बस इसलिए ही स्पर्श अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ॥ कर्म ज्ञान नहीं है क्योंकि कर्म कुछ जाने नहीं । बस इसलिए ही कर्म अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ॥ धर्म ज्ञान नहीं है क्योंकि धर्म कुछ जाने नहीं । बस इसलिए ही धर्म अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ॥
SR No.032006
Book TitleGatha Samaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2009
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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