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________________ ११० गाथा समयसार शुभ या अशुभ द्रव्य ना कहें तुम हमें जानो आत्मन् । यह आतमा भी बुद्धिगत द्रव्यों के पीछे ना भगे ।। यह जानकर भी मूढजन ना रहें उपशमभाव को। मंगलमती को ना रहें पर के ग्रहण का मन करें। पौद्गलिक भाषावर्गणायें बहुत प्रकार से निन्दारूप और स्तुतिरूप वचनों में परिणमित होती हैं। उन्हें सुनकर अज्ञानी जीव 'ये वचन मुझसे कहे गये हैं' - ऐसा मानकर रुष्ट (नाराज) होते हैं और तुष्ट (प्रसन्न) होते हैं। - शब्दरूप परिणमित पुद्गलद्रव्य और उसके गुण यदि तुझसे भिन्न हैं तो हे अज्ञानी जीव! तुझसे तो कुछ भी नहीं कहा गया, फिर भी तू रोष क्यों करता है ? __शुभ या अशुभशब्द तुझसे यह नहीं कहते कि तू हमें सुन और आत्मा भी अपने स्थान से च्युत होकर कर्ण इन्द्रिय के विषय में आये हुए शब्दों को ग्रहण करने (जानने) को नहीं जाता। इसीप्रकार शुभ या अशुभ रूप यह नहीं कहता कि मुझे देख और आत्मा भी चक्षु इन्द्रिय के विषय में आये हुए रूप को ग्रहण करने नहीं जाता। ___ शुभ और अशुभ गंध भी तुझसे यह नहीं कहती कि तू मुझे सूंघ और आत्मा भी घ्राण इन्द्रिय के विषय में आयी हुई गंध को ग्रहण करने नहीं जाता। इसीप्रकार शुभ या अशुभ रस तुझसे यह नहीं कहते कि तुम हमें चखो और आत्मा भी रसना इन्द्रिय के विषय में आये हुए रसों को ग्रहण करने नहीं जाता। __ शुभ या अशुभ स्पर्श तुझसे यह नहीं कहते कि तुम हमें स्पर्श करो और आत्मा भी स्पर्शन इन्द्रिय के विषय में आये हुए स्पर्शों को ग्रहण करने नहीं जाता।
SR No.032006
Book TitleGatha Samaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2009
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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