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________________ लकीर के फकीर बने रहना यह कौनसी विद्वत्ता ? यह कौनसा न्याय !! इस संकुचिततासे अब न ज्ञातिकी वृद्धि होगी, न ज्ञाति में ऐक्य होगा, और न ज्ञाति संगठित होगी। यदि ज्ञाति को नामशेष न होने देना है, यदि पूर्वजों का गौरव स्थायि रखना है, तो शनैः शनै पोरवाड मात्र ने एक होना चाहिये । परस्पर रोटी बेटी ब्यवहार प्रचलित करना चाहिये, और खोया हुआ वैभव फिरसे प्राप्त करके भारत में नहीं नहीं, संसारभर की सभ्य ज्ञातियों में अपने को धन्य कहला लेना चाहिये । अस्तु ! ___ दसा बीसा के भेद का यहां तक विचार हुआ और यह सप्रमाण सिद्ध हुआ कि: ( १ ) दसा, बीसा ज्ञाति की दो तड (तट) हैं। भिन्न भिन्न ज्ञातियां नहीं। (२) यह भेदाभेद वस्तुपाल तेजपाल के विधवा जात होने के कारण सं. १२७५ में हुआ। (३ ) गुजरात की प्रायः सभी महाजन झातियों में यह भेद है। अन्य प्रांत के महाजनों में नहीं। अतः सिद्ध होता है कि, मारवाड, मालवा. दक्षिण आदि प्रदेशों में जो जो महाजन दसा वीसा कहे जाते हैं वे मूल श्रीमाल (भिन्नमाल ) तथा गुजरात से निकले हुए हैं।
SR No.032004
Book TitlePorwar Mahajano Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakur Lakshmansinh Choudhary
PublisherThakur Lakshmansinh Choudhary
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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