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________________ ७३ रूप धारण कर लेती है, और उसके मूल उत्पादक दिवंगत हुए बिना वा मूल कारण का समझोता या विस्मरण हुए बिना उन्हों में एक्य होता नहीं । वस्तुपाल तेजपाल के समय की तड, मतभेद, द्वेष तथा मान सन्मान मूलक होने से उसका निपटेरा नहीं हुआ। कभी कभी मूल उत्पादकों के पीछे उनके संतानों में समझोता होकर ऐक्य हो जाता है; परंतु यदि संतान दर संतान- पीढी दर पीढी, उस द्वेष वृक्ष का सींचन होता रहे अथवा व्रण को ठीक न होने देते उसे बिगाडने का ही प्रयत्न होता रहे किंवा अयोग्य धर्म विरुद्ध वा जाति प्रथा से विपरीत कार्य करने वाले और भी दूषित लोक तड में समय पर संमिलित कर लिये गये तो कई साल पश्चात् तडका रूप बदल कर उनको भिन्न भिन्न ज्ञाति का स्वरुप प्राप्त होना संभवनीय है । ऐसी हालियत में निर्दोष त उच्च श्रेणीकी तथा दूषित तड निम्न श्रेणीकी कही जाना अयथार्थ नहीं होता । पहिले तडको शाखा नाम से जाना जाता था। शाखा मूल वृक्ष की डालियां हुआ करती हैं अतएव मूल को वृद्ध और नव विकसित को लघु कहना भी अयोग्य नहीं । यही सबब है कि इन दोनों को " वृद्ध शाखा लघुशाखा का नाम दिया गया 1 99 · तडपडने के अन्य कारणों में से मुख्य कारण ऐसा महत्व पुर्ण है कि, उस समय से दोसो चारसो वर्ष आगे तक
SR No.032004
Book TitlePorwar Mahajano Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakur Lakshmansinh Choudhary
PublisherThakur Lakshmansinh Choudhary
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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