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________________ भिन्नता का निपटेरा न होने से प्रचलित रहे हैं। सांप तो निकल गया किन्तु घसीटन अब भी कायम है। यह तड कब और क्यों हुई इस संबंध के कोई प्रमाण उपलब्ध हों तो अब देखना चाहिये। श्री जैन श्वेतांबर कॉन्फरन्स हेरल्ड के सन १९१५ के खास अंक में " जैन असोसियेशन ऑफ इन्डिया” की और से मिली हुई प्राचीन प्रति अनुसार “ तपगच्छ पट्टावली " प्रसिद्ध की गई है उस में वस्तुपाल तेजपाल और दसा वीसा के संबंघ की निम्नोक्त हकीकत दी है। " वस्तुपाल तेजपालनो संबंध" " गुजरात देशमा धुलका [धोलका ] नगरमां उवरड गोत्रमा प्राग्वाट ज्ञातिमां शाः आसराज रेहेता हता। ते पाटणमां वस्त्र व्यापार अर्थे आव्या । त्यां हाट मांडो रह्यो । मालसुद गांमभां व्यापार करे छ । एकदां पंचासरा पासनी यात्रा करि धर्म शालामां चित्रवाल गच्छनां श्रीभुवनचंद्र सूरिने वांदी बेठो । एवामां त्यां श्रीमाली ज्ञातिनो वणहर गोत्रनो शा आंबो तेनी स्त्री लक्ष्मी अने तेनी पुत्री बाल विधवा कुंवर नामनी ते श्री गुरुने वादे छ । एटलामां गुरुने वांदता थकां श्री सूरिए वालकुक्षीए तलव्रण देखी मस्तक धुणाव्यू त्यारे पासे बेठेला शिष्ये कहयुं " श्री गुरु ! आy कारण शुं ?" गुरुए कहयु,
SR No.032004
Book TitlePorwar Mahajano Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakur Lakshmansinh Choudhary
PublisherThakur Lakshmansinh Choudhary
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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