SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शताब्दि. श्रीमाली. पोरवाड. ओसवाल. वृद्ध. लघु. वृद्ध. लघु. वृद्ध लघु. १६वीं शताब्दि. १ २ १२ ३ ९ ७ १७,, ,, ८ ० ९ लेखोंमें उल्लेख९ लेखोंमें उल्लेख १८,, ,, ४ १ ३ ० ३ १ १९,, ,, कुल २८ लेखों में से १३ वृद्ध-शाखा के और एक लघु-शाखा का है। उक्त खुलासे से प्रकट होता है कि वृद्ध-शाखा भिन्न नाम से पहिचानी गई है। ज्ञाति-समूह को साजनू कहने की प्रथा तो लगभग भी प्रचलित है । अर्थात् “वृद्धसाजन लघुसाजन" का अर्थ समझना कठिण नहीं। परंतु वृद्ध लघु संतानीय “शब्द गच्छौं की शिष्य संप्रदाई प्रथा का द्योतक सा मालुम होता है परंतु है उसका संबंध "दसा बीसा” इन्ही शब्दों से । “बृहत शाखा लघु शाखा " ये शब्द बडी छोटी शाखा को बताते हैं। "साधु [ साहु ] शाखा-वृद्ध शाखा ये शब्द वृद्ध शाखा वालों ने अपने ही गौरव के लिये लगाये होना चाहिये । एवं ' वृद्ध' जगह जितने भी शब्दों का प्रयोग हुआ है वह सब श्रेष्ठता सूचक है । अतएव दसा बीसा का भेद इन ज्ञातियों में होने का कारण भी कोई श्रेष्ठ कनिष्ठता का उत्यादक होना चाहिये । उक्त अनुशीलन से यह भी ज्ञात होता है कि वृद्ध शाम्बा के लेख अधिक और लघु शाखा के कम हैं उसका कारण भी
SR No.032004
Book TitlePorwar Mahajano Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakur Lakshmansinh Choudhary
PublisherThakur Lakshmansinh Choudhary
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy