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________________ ४२ महाजन ज्ञातियों में परस्पर बेटी व्यवहार की रोक न थी। श्रीमाली और पोरवाड ज्ञातियां बहुत उच्च श्रेणि की गिनी जाती थी। उनमें भी पोरवाड भिन्नमाल के रक्षण कर्ता होने के कारण सब से अधिक सन्माननीय थे। पोरवाड लोग दानशूरता में भी कुछ कम न थे ! प्रायः सभी जैन तीर्थों में इनके बनाये मंदिर, मूर्तियां, जीर्णोद्धरित जिनालय, दानशालाएं आदि आज भी इस बात का प्रमाण हमें दिखा रहे है । विमलशाह, वस्तुपाल, तेजपाल, धरणासा, रत्नासा, पेथडशाह आदि लक्ष्मीपुत्रों के बनाये प्रेक्षणीय, प्रशंसनीय, कलाकुशलता में संसार भर में उच्चतम ऐसे मंदिर आज भी इस बात की साक्षी देते हैं। पोरवाड महाजन बहादुरी में भी कुछ कम न थे। इनों की बदादुरी की वार्ता में विमलशाह तथा वस्तुपाल तेजपाल का नाम निकले बिना नहीं रहता। कोई चारण का पुराना दोहा है: मांडी मुर कीरई करई, छांडिय मांस ग्राह, विमलडी खंडउ कढीउ, नउ वाली नाह, उक्त दोहे की वार्ता ऐसी है कि, आबूपर विमलशाह जब मंदिर बंधवाने लगे तो उस स्थानका अधिष्ठाता नागराज वालीनाथ बलीदान न मिलनेके कारण हर समय रातको बंधान गिराने लगा। एक रात्री को विमलशाह वहां दबकर बैठा और जब नागराज वहां आया तो खांडा खींचकर उसको
SR No.032004
Book TitlePorwar Mahajano Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakur Lakshmansinh Choudhary
PublisherThakur Lakshmansinh Choudhary
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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