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________________ निवास गंगा जमुना के दोआव में था यह भारतादि ग्रंथों में दिया है अर्थात् पुरुखा के भेजे हुए योद्धा पूर्वसे आने के कारण प्राग्वाट कहावें तो आर्श्वय नहीं । मेवाड के गुहिल वंशी राजा हंसपाल को “ करनवेल" के शिलालेख में प्राग्वाट का राजा कहा है। इससे मेवाड का नाम " प्राग्वाट" होने का अनुमान न करते मेदपाट के राजा हंसपालादि प्राग्वाट के भी राजा होने का अनुमान करना अधिक यथार्थ होगा। क्योंकि गुहिल वंश में कई राजा बहुत प्रतापि हो चुके हैं। संभव है कि, प्राग्वाट-पूर्व प्रदेश भी उन्होंने हस्तगत किया हो। जबलपूर ( करनवेल ) का उस समय पूर्व प्रदेश में समावेश था । लेख लेखन के समय वहां का राज्य गुहिल राजाओं की सत्ता में होने से वहां के लेखक ने उन्हें अपना राजा [ मातहती के कारण ] संबोधित करना श्रेयस्कर था, और इसी से वे " प्राग्वाटे वनिपाल" कहाये हों क्योंकि, राणपुर [ मारवाड ] तीर्थ का प्रसिद्ध मुख्य मंदिर जो कि प्राग्वाट वंशी संघवी रत्नासाका बनाया है उसकी प्रशस्ति में संघवी रत्नासा के वंश को प्राग्वाट वंशी बताया है। परंतु प्रशस्ति के आदि में गुहिल वंश की संपूर्ण वंशावली देते समय उन्हें प्राग्वाट के राजा न बताते केवल " मेदपाट राजाधिराज " ऐसा लिखा है। इसी प्रशस्ति में आगे बढकर ४१ वे राजा " कुंभकर्ण" के वर्णन में उन्हें: " विषम तमा भंग सारंगपुर, नागपुर, गागरण, नराणका, अजय मेरु, मंडोर, मंडोरकर, बूंदि, खाटु, चाट, सुजानादि
SR No.032004
Book TitlePorwar Mahajano Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakur Lakshmansinh Choudhary
PublisherThakur Lakshmansinh Choudhary
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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