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________________ अर्थात् 'प्राग्वाट' मेवाड [ मेदपाट ] का ही दूसरा नाम होना चाहिये । संस्कृत के शिला लेखों में तथा पुस्तकों में 'पोरवाड' महाजनों के लिये 'प्राग्वाट' नाम का प्रयोग मिलता है। वे लोग अपना निकास मेवाड के पुर कस्बे से बतलाते हैं। जिससे सम्भव है कि प्राग्वाट देश के नाम पर से वे अपने को प्राग्वाट वंशी कहते रहे हों ।” [ ना. प्र. पत्रिका भाग २/१९७८ पृ. ३३६] पोरवाडों का पुर कस्बे से निकास होना संभवनीय नहीं मालूम होता। क्योंकि पुर कोई नगर वा बडा ग्राम होना कहीं भी नहीं पाया जाता। छोटे से कस्बे के पांच पच्चीस घरों में से इतनी बडी ज्ञाति बनना शक्य नहीं। दूसरे प्राग्वाटों के लगभग पांचसो सातसो लेख देखने में आये उनमें केवल एकही लेख ऐसा मिला है कि जिसके निर्मिता 'पुर' वासी थे। लेख । जेसलमीर के चन्द्रप्रभा स्वामी के मन्दिर में पञ्चतीर्थ पर. "सं. १५१८ वर्षे महा सुदी १३ गुरौ प्राग्वाट ज्ञातीय व्य० पूंजा भा० जासु सुत व्य० वाछा केन भा० बाछू पुत्र मेला कंरपाल युतेन श्वश्रेयसे जीवित स्वामी चंद्रप्रभा बिंब कारितं कुल क्रमायात् गुरुभिः श्री पूर्णिमा पक्षे भीमपल्लीय भट्टारक श्री जयचन्द्र सूरिभिः प्रतिष्ठितं......पुरवास्तव्य ।”
SR No.032004
Book TitlePorwar Mahajano Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakur Lakshmansinh Choudhary
PublisherThakur Lakshmansinh Choudhary
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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