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________________ श्रीमाल नगर लक्ष्मी का बसाया हो वा श्रीमल्ल का बसाया हुआ हो वहां लक्ष्मी का वास्तव्य अवश्य था। यथा-- एतदेव विप्राणा श्रीमालनाम पत्तनम । यत्रोा खनमानायां पुरा रत्नानि निर्मयुः ॥ २२ ॥ (श्रीमाल पुराण) उक्त श्लोक खुल्लं खुल्ला बताता है कि नगर के आसपास सुवर्णादि रत्नों की खदाने थी। सोना तथा रत्नादिक प्रत्यक्ष लक्ष्मी रूप ही होते हैं। श्रीमाल की भूमि में ऐसे बहुमूल्य पदार्थ भरे पडे थे; इसी कारण उसे लक्ष्मी का प्रियस्थान जानना अस्वाभाविक नहीं; और लक्ष्मी वहां वास करती थी वह भी असत्य नहीं ! उस भूमि में लक्ष्मी भरपूर होने से स्वभावतः चहु ओर से लोकवहां आकर बसे । अर्थात् लक्ष्मीने वह नगर बसाया ऐसा लिखना अयथार्थ नहीं । लक्ष्मी के बल क्या नहीं होता !! लक्ष्मीने बडे बडे शिल्पशास्त्री (विश्वकर्मा) को वहां बुलाये । लक्ष्मीही के कारण श्रीमाल नगर इंद्रपुरी जैसा बना इस में आश्चर्य क्या ? न्यूयार्क, लंदन, परिस, बंबई, कलकत्ता आदि प्रेक्षणीय नगर लक्ष्मीके प्रभावसेही तो बने हैं। जहां लक्ष्मी हो वहां उस के पुजारी व्यापारी ( वणिक् पुत्र ) होतेही हैं। अतएव श्रीमाली लोगोंकी श्रीदेवी इष्ट देवता ( गोत्रदेवी) लिखना यथार्थ है। जब श्रीमालनगर श्रीमानोंका निवासस्थान था तो फिर वहां सोनियोंका अधिक वास होना भी संभवनीय है; और उनको अधिक आमदनी
SR No.032004
Book TitlePorwar Mahajano Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakur Lakshmansinh Choudhary
PublisherThakur Lakshmansinh Choudhary
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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