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________________ १८ ब्राह्मणोंने देखा कि जन समुदाय को मान्य ऐसा धर्म प्रचलित किये विना चारा नहीं तब पुराणों की रचना का आरंभ हुआ। वाम मार्गके तंत्र ग्रंथों के स्थान पुराणों को दिये गए। वर्णसंरक का ज्ञातिभेद अटकाया गया। जैन और बौद्ध मतके अनुयायी होकर एकाकार संघमें मिले हुए लोगों को फिरसे अपने संघम मिलाने की अवश्यकता हुई। उस समय के नियमानुसार फिर आनेवाले लोगों को किस वर्ण के गिने जावें, यह प्रश्न उपस्थित हुवा, तब एक नयी योजना निर्माण की गई, चतुर्वण के अतिरिक्त एक पंचम वर्ण की स्थापना की और उनका नाम 'सत् शूद्र (सच्छूद्र ) रखने में आया। शूद्रों से इनको उच्च माना। कलियुग में क्षत्रिय और वैश्यों का लोप होना बताकर ब्राह्मण और शूद्र इन्हीं को वर्णों का अस्तित्व रक्खा । इस प्रकार क्षत्रिय वैश्योंको छुट्टी देकर ब्राह्मण सतशूद्र और शूद्र यही वर्णत्रयि स्थित की और जैन तथा बुद्ध धर्म से वापिस लौटनेवालों को सच्छूद्र वर्ण में स्थान मिला। विशेषतः जैन बौद्ध मतावलंबियों को निर्दोष निर्वाह मार्ग वाणिज्यही होने से प्रायः वे व्यापार करने लगे। यही आजकल की वणिक ज्ञातियां हैं। उक्त धर्म विप्लव विक्रम संवत पूर्व लगभग पानसो वर्षों से वि० सं० आठसो तक एवं बारह तेरहसो वर्षतक प्रचलित रहा। पश्चात् समयने फिरसे पलटा खाया। श्रीमद् शंकराचार्य के समय से ब्राह्मण धर्म की वृद्धि होने लगी। पुराणों में कई जगह कहा है कि, अमुक देवने आवश्यकतानुसार इतने क्षत्रिय उप्तन्न किये और
SR No.032004
Book TitlePorwar Mahajano Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakur Lakshmansinh Choudhary
PublisherThakur Lakshmansinh Choudhary
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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