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________________ इसी तरह: कामयोग प्रियातीक्ष्णाः क्रोधनाः प्रिय साहसाः । त्यक्त स्वधर्मा रक्तांगास्ते द्विजाः क्षत्रतां गताः ॥ १ ॥ गोभ्यां वृत्तिं समास्थाय पीताः कृष्युप जीविनः । स्वधर्मान्नुतिष्ठति ते द्विजाः वैश्यतां गताः ॥ २ ॥ हिंसावृत्ति क्रियालुब्धाः सर्वे कर्मोप जीविनः । कृष्णाः शौच परिभ्रष्टास्ते द्विजाः शूद्रतां गताः ॥ ३ ॥ ( महाभारत - शांतिपर्व ) इस तरह आर्य जाति उच्चनीच भेदवाले विभागों में विभाजित हुई । ये विभाग जड नहीं है और न जड होना चाहिये; किंतु पुराना सत्यपुराने ग्रंथों में पुराने तत्व ज्ञानियों के मुख में ही रह गया जैसे: एक वर्णमिदं पूर्ण विश्वमासद्युधिष्ठिर । कर्म क्रियाविशेषेण चातुर्वण्यं प्रतिष्ठितं ॥ १ ॥ सर्वे वै योनिजा मर्त्याः सर्वे मूत्रं पुरीषिणः । एकेंद्रिये द्रियार्थाश्च तस्मास्वील गणो द्विजः ॥ २ ॥ शूद्रोपिशील समानो गुणवान् ब्राम्हणो भवेत् । ब्राम्हणोपिक्रियाहीनः शूद्रादप्यधमो भवेत् ॥ ३ ॥ शूद्रो ब्राम्हणतामेति ब्राम्हणश्चेति शूद्रताम । क्षत्रियाजात मेवंहि विद्याद्वैश्यान्त थैवच ॥ ४ ॥ ( महाभारत ) अर्थात् — हे युधिष्ठिर ! अखिल जगत एकही ज्ञाति का है । कर्म क्रियाओं की विशेषता से चार वर्णों की स्थापना हुई 1
SR No.032004
Book TitlePorwar Mahajano Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakur Lakshmansinh Choudhary
PublisherThakur Lakshmansinh Choudhary
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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