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________________ - १३० राज की ओर से म्याने की सवारी का सन्मान मिला था। उस समय पोरवाड महिलाएं प्रायः बहुत कम बाहर निकलती थीं, किन्तु कहा जाता है कि, जब कोई पर्व त्योहार वा उत्सव के समय वे इकट्ठी होकर निकलती तो उन के पीछे गांव के सैकडों दरिद्री चलते जाते । वे इसी आशा से कि पोरवाड महिलाओं के वस्त्रों में लम्बे हुए मोती का शरीर पर धारण किये अलंकारों में से कुछ घिरे तो मिल जावे । क्यों कि उस समय पोरवाड इतने श्रीमान थे कि उन के घर , की स्त्रियां अपने लेहेंगे लुगडों में सच्चे मोती की झालरें लगातीन अलंकार की तो बात ही निराली. कार्तिक चौक के अतिरिक्त खारा कुआ तथा खुणांची में सी पोरवालों का निवास था। खारे कुए पर धनाढ्य श्रेष्ठी माधवसिंह खूबचंद अफीमिया की हवेली [ मकान ] अब भी है परंतु शोक है कि वह अब एक बोहरा ज्ञातिय मुसलमान की स्थावर सम्पत्ति है। अफीमिया अति सम्पत्तिमान थे । कहा जाता है उन के केवल पूजा के सुवर्ण उपकरण सवा लाख से अधिक मूल्य के थे । उन की संपत्ति का तोल करने को पच्चीस दल्लालों को छे मास लगते तब होता था । सुना है कि एक समय कोई राजवंश की सन्मान्य महिला श्रेष्ठजी की हवेली देखने आई तब श्रेष्ठजी की भार्या की ओर से उन का योग्य सन्मान न होनसे वे रुष्ट होकर चली गई। श्रेष्ठजी के पश्चात् उनकी अपार संपत्ती का अपहरण हुआ। उन के दान किये जैन मंदिर तथा उपाश्रय
SR No.032004
Book TitlePorwar Mahajano Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakur Lakshmansinh Choudhary
PublisherThakur Lakshmansinh Choudhary
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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