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________________ ११३ काटेगा"। बडी कठिण समस्या आ पडी । राजा यमराज से भी भंयकर हो गया। उस समय राजा को कौन समझावे किन्तु सोमेश्वरने एक अन्योक्ति द्वारा राजा को उपदेश देकर अनर्थ से बचाया। मासान्मांसल पाटला परिमल व्यालोल रोलम्वतः प्राप्य प्रौढि मिमां समीर ! महतीं हन्त त्वया किं कृतम् । सूर्याचंद्र मसौ निरस्तत मसौ दूरं तिरस्कृत्य य-- त्याद स्पर्श सहं विहायास रजः स्थाने तयोःस्थापितम् ।। __ अर्थात्-हे वायु ! महिनो महीने तक गुलाब की सुगंधि में घूमने के बाद अब इस प्रवृद्ध अवस्था को प्राप्त होकर तूने यह क्या अनर्थ करडाला ! अरे, जिन सूर्य और चंद्रमाने अंधःकार को दूर किया उन्हीं का नरादर करके आज तू आकाश में उनके स्थान पर पैरों के स्पर्श करने बाली धूलि को स्पापित कर रहा है । संघ यात्रा। ___ उपर कहे अनुसार वस्तुपाल तेजपाल ने धर्ममार्ग में सच में ही अगणित द्रव्य का व्यय किया है। मंत्री ने तीर्थ यात्रा के वास्ते संघ निकाला अनेक साथी, सेवक, हाथी, बैल रथ, गाडी, आवश्यक कुल वस्तुओं को लेकर शुभ मुहूर्त पर उनोंने यात्रा के लिये प्रस्थान किया । यात्रा में वस्तुपाल का प्रण था कि सब ने भोजन करने के पश्चात सोना, और औरों
SR No.032004
Book TitlePorwar Mahajano Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakur Lakshmansinh Choudhary
PublisherThakur Lakshmansinh Choudhary
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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