SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०० मंदिर बनवाने वाले के कुल का कोई पुरुष उस मंदिर में दर्शन करने आता उसके नामकी ऐसी मूर्तियां बनाई जाती । जैन मंदिरों के अतिरिक्त शिव और विष्णु मंदिर में भी राज-पुताने में कहीं कहीं यही प्रथा देखने में आती है । पीछे से इस मंदिर पर भी मुसलमानोंने वि. सं. १३६८ में हस्तक्षेप किया था। उसका जीर्णोद्धार मंडोरवासी लत और बीजडने वि. सं. १३७८ में किया था । हेमरथ दशरथने वि. सं. १२०२ में तथा महामात्य धनपालने वि. सं. १२४५ में पहिले इसका जीर्णोद्धार किया था । अनुमानतः मंदिर बनवाने के बाद शीघ्रही विमल का देहांत हुआ होना चाहिये । क्योंकि वह न तो हस्तिशाला वना सका और न अन्य देवकुलिकाओं में मूर्तियों की स्थापना कर सका । यह सब काम पीछे से हुआ है । नेट का वंश तो आगे चला दिखाई देता है परंतु निमल के वंशजो का कोई पता नहीं चलता । केवल अभयसिंह और डन के तीन पुत्रों के नाम अंबिका की मूर्ति पर हैं वही । उक्त मंदिर के व्यय के संबंध में : History and Literature of Jainism ( हिस्ट्री ऍन्ड लिटरेचर ऑफ जैनीझम ) में लिखा है कि:- पृष्ठ ६७ * स्वपितृश्रेयसे जीर्णोद्धार ऋषभ मंदिर; कारयामास तुल्लेल्ल वीजडौं साधु सत्तम [म]. [ विमल मन्दिर - जीर्णोद्धार प्रशस्ती ].
SR No.032004
Book TitlePorwar Mahajano Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakur Lakshmansinh Choudhary
PublisherThakur Lakshmansinh Choudhary
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy