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________________ ९५ विमल को कोई पुत्र था या नहीं इसका पता नहीं लगा; क्योंकि विमल के पीछे की वंशावलि नहीं मिलती । केवल एक लेख उक्त मंदिर में. अंबाजी की मूर्ति पर खुदा हुआ है । उसका आशय है कि, विमल के वंशज अभय सिंह के पुत्र जगसिंह, लखमसिंह और कुरुसिंह हुए, तथा जगसिंह का पुत्र भाण हुआ इन सबने मिलकर विमल वसही में अंबाजी की मूर्ति स्थापित की तीसरा शिला लेख विमल वसही के जीर्णोद्धार का वि. सं. १३७८ का है; जिसमें लिखा है कि, जंद्रावती का राजा बंधु ( धंधुक, धंधुराज ) वीरों का अग्रणी था । जब उसने राजा भीमदेव की सेवा स्ववीकार न की तब राजा (भीमदेव ) उसपर बहुत क्रुद्ध हुआ । जिससे व मनस्वी ( धंधुक ) धारा के राजा भोज के पास चला गया । भिर राजा भीमदेव ने प्राग्वाट वंशी संत्री विमल को आवूका दंडपति ( सेनापति ) वनाया । उसने वि. सं. १०८८ में आबू के शिखर पर आदिनाथ का मंदिर बनवाया । + * संवत १३९४ वर्षे जेष्ट वढि ५ शनी महं० विमलान्वये ठः अभय सिंह भार्या अहिवदे पुत्र महंजगतसिंह लखमसिंह कुरा सिंह महेजगतसिंह भायी जेतलंद तत्पुत्र महंभाण [ मंडल माण ] केन कुटुंब सहितेन विमल वस हिकायां देव्याः श्री: अंबिकायाः । मूर्ति कारिता । प्रतिष्ठिता । + तत्कुल कमल मरालः कालः प्रत्यर्थि मंडली का नाम । चंद्राक्ती पुरीश: समजान वारायणिर्धधुः ५ ॥ श्री भीमदेवस्य नृप य सेवामलभ्यमानः किलधन्धुराजः; नरेश रांषाश्च ततो मनस्वा धाराधिपं भोज नृप प्रपेदे ॥ ६ ॥ • प्रावाट वंशाभरणं वभूव रत्न प्रधानं विमलाभिधानः ॥ ७ ॥ ततश्च भीमन नराधिपेन प्रताप वन्हि विमली महामतिः । कृतोर्बुदे दंडपतिः सतां प्रियां प्रियं वा नन्दतु जन- शासने ॥ ८ ॥ श्री विक्रमादित्य नृपाद्वयतीतेऽष्टा शांतियांते शरदां सहस्त्रे; श्रा आदि देवं शिखरेबुधस्य निवेशित श्री विमलेन वंदे ॥ ११ ॥ ( आबूका शिलालेख )
SR No.032004
Book TitlePorwar Mahajano Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakur Lakshmansinh Choudhary
PublisherThakur Lakshmansinh Choudhary
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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