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________________ ७६ त्रीस्तुतिपरामर्श क्यौं नही ? जवाबमें मालूमहो बडीटीका नियुक्तिपर व्याख्याकरतीहै उसमें सूत्रस्पर्शकनियुक्तिसे जोपाठ-रचनामें-निकट आया उसकों बतलातीह, संपूर्णमूत्रका अर्थ बयान नहीं करती. इसीसबब सूत्रस्पर्शक नियुक्तिकारने उसका कथन नहीकिया. थोडे पढेहुवे लोग इतनीबारीकीकों पहुंचतेनही. और उनके सामने कहदियाजाताहै देखोभाइ ! बडीटीकामें नहींहै, आवश्यकसूत्रकी बडीटीकानियुक्तिपर आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजीने बनाइहै, प्रश्नोत्तरपत्रिकामें लेखकनेलिखाहै हरिभद्र सूरिजीने चारथुइ-स्थापनकरनेकलिये ललितविस्तरा ग्रंथबनाया. और फिर उनहीकी बनाइ आवश्यकसूत्रकी बडीटीकाका सबुत चाहना.यह कितनी ताज्जुबकी बातहै, ! जिज्ञासुजनमनः समाधिकिताब पृष्ट (१९) पर बयानहैकिजबतक उत्सूत्रप्ररुपक-बहार-न-काढेजायगे तबतक अन्यमतावलंबीयोंकी कुतर्कोका जवाबदेना दुर्लभ होगा. (जवाब.) हमकों अन्यमतावलंबीयोंकी दलीलोका-जवाबदेना कोइ दुसवार नही,-और उन्सूत्रप्ररुपकोंकों बेशक ! बहार निकालना चाहिये, मगर पेस्तर इसवातका तस्विया करलोकि-उत्सूत्रप्ररुपककोन है. ? शांतिविकयजीके लेख विनाशास्त्रसबुतके हर्गिज ! नहीहोते, हर लेखमें शास्त्रसबुतसें पेंश आतेहै. ख्याल रहे ! शांतिविजयजी हमेशां खुशमिजाज और कुतीयोंकी कुतर्क-रुप-अशांतिको मिटानेवालेहै, जिसकोजोकुछलिखनाहो फिर लिखे–इन्साफके लेख तयारहै. __ जिज्ञासुजनमनःसमाधिकिताब पृष्ट (१९) पर मजमूनहैकिअव-जौ-जैनपत्रमें किसीप्रकारका अपशब्द देखुंगा-तो-अबस्य लिखनेमें-न-चुकुंगा. (जवाब.) वेशक ! मतचुकना, जिसकीउमेद हो-पुरीकरलेना. यहकोइ-न-समझेकि-विद्यासागर चूपरहे, जितना लिखोगे जवाबमें उससेदुगुना-सामनेपाओगे,
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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