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________________ [कवित्त.] महावीरशासनके उन्नतिकरनहार-धर्मके धुरंधर ऐसे मुनिराजहै, कुमतिमद हस्तिनके कुंभस्थलफोरवेकों-पंचाननराजसमजिनके शिरताजहै, ज्ञानजलदाता उलसाताभविवारिजके-अचलदृढरंगमयजिनका समाजहै, मोहनमनमाने-तीनलोकमें-न छाने-ऐसेसुगुरुसयानेविजयशांतिमहाराजहै,३ [इतिगुरुभक्तिपर-कवित्त,-] -------- - [ कवि-सुरजमल-साकीन-उदयपुर-मुल्कमेवाडकी बनाइहुई-गुरुभक्तिपर-लावनी,-] विद्यासागर न्यायरत्न श्री शांतिविजयजी-बडेअणगार, संयमलिनो आपने छोडयो कुटुंबसब धनघरबार, भावनगर गजरातके मांही-शहरबडो भारी उत्तम, धन्यहै धरणी वहांकी जहां मुनिजी लियोहै जनम, धन्य पिता मानकचंदजीको-वो चलते जिनमतको धरम, थे सतवादी जिनके पुत्र कहलाये अनुपम, धन्यवाद रलियातकवरकों-माता बुद्धिकी थीअगम, संस्कारसे आप आजन्मे उदयभये निजपूरवकरम, महाजन विशाओशवालथे-जूठवचन नही एकलगार, संयमलीनो आपने छोड़यों-कुटुंबसबधनघरबार, विद्या, ? श्रीरी आत्माराममहाराज-जिनोने लिये आपकों है पहिचान, दीक्षालिनी साल उन्नीस और छत्तीसप्रमान, वेशाखशुक्ल दसमी गुरुवारे-हुवेसंयमी चतुरसुजान,
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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