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________________ ( त्रिस्तुति परामर्श. ) ६९ लाजिम है, भाष्यकारकों - अवचूरिकारकों और नवअंगशास्त्रकी टीकाके बनानेवाले- अभयदेवसूरिजीकों - मान्यकरे, पंचांगीकों मान्य करतेहो तो- पंचांगीकों बनानेवालोंके - फरमान को भी मंजूर करो, - E जो शख्श सचीनींदमें सोताहो उसको अवाज देकर दुसरा शख्श जगा सकता है, मगर जो शख्श नकली नीदमें जानबुझकर सो रहे और अवाज देनेवालेकी अवाजकों - सुनताहुवाभी--न--सुने, उसको कोइ कैसे जगा सकेगा. बस ! इससे ज्यादे कोइ क्या लिखे, - - ? (२९) ( जवाब - जिज्ञासुजनमनः समाधि किताबके लेखका.) जिज्ञासुजनमनसमाधिकिताब - जो - ( २२ ) पंनों की छपी है, उसके टाइटल पेपर लिखा है- “ शांतिविजयजी के साहसिक कर्मोंका प्रतिकार, (यानी ) शांतिविजयजीके कार्यपर समालोचना, ( जवाब . ) शांतिविजयजीके साहसिककर्मोंका प्रतिकार तुम क्या करोगे ! तुमारे साहसिककर्मोंका प्रतिकार शांतिविजयजी कर रहे है. देखलो ! तुमारे सवालो के जवाब किसकदर उमदगीसें देरहे है जिसकों पढकर तुमभी ताज्जुब करोगे, चारपंनेका लेख लिखकर समझते होगें उनके साहसिककमका प्रतिकार होगया, मगर यादरखो ! उनके साहसिककमका प्रतिकार तुमसे - न- होसकेगा. देखो ! इसी जिज्ञासुजनमनः समाधि किताबके पृष्ट (१३) पर तुम खुद लिखतेहो" पीले कपडे पहरना, रैलविहार करना, इत्यादिमें एकांत वादकरने से निन्हवहरूले में कुछ हरकत नही, " सोचो ! इसका मतलब क्या हुवा ?
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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