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________________ ६२ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) स्कारकरकेश्रुतदेवीकी विद्याका लाखदफे जापकरे, समभावमें उपशांत रहे, और अपने चित्तको एकध्यानपर रखे, रागद्वेषसे रहितहोकर उपयोगकेसाथ उक्तविद्याका जापकरे,-बतलाइये ! इससे क्या सबुतहुवा ? खयाल करो ! अगर जैनआगमको श्रुतदेवताकीविद्याकाजापनामंजुरहोता, तो यहपाठ क्यों होता ? सबुतहुवा साधुलोगभी श्रुतदेतदेवताकीविद्याका पाठ करे, तीनथुइपरएतकातरखनेवालोकी ताकातहो-तो-कहदेवे इसपाठकोंभी हम नही मानते, और जैसे चोथीथुइके लिये टालटुलकरतेहै इसपाठकेलियेभीकरे, मगरतारीफहै उनकीजो तीर्थकर गणधरोके फरमानेपर अमलकरे, और बेंहुदा वेंसनदबातें पेंशन-करे, ___ अब व्यवहारसूत्रकी चूर्णिकापाठदेकर देवताकी सहायतासें आलोचनालेनेका सबुतदेतेहै, सुनो ! व्यवहारसूत्रकी चुर्णिमें लिखाहैकि-साधुलोगोको आलोचनापायछित लेनाहो-और-उसवख्तगुरुमहाराजका इत्तफाक-न-हो-तो-तेलेकातपरके देवताका आराधनकरे, और उसकी सहायतासें आलोचना लेवे. ___ (व्यवहारसूत्रकी चूर्णकाा पाठ,-) इथ्थं तिथ्थंकरेण-गणहरोहिय-बहुणि-पायछित्ताणिदिज्जमाणाणि देवयाणदिठाणि-तओ देवयाओ अठमभत्तं काउं अकंएिता आलोए, (माइना.) तीर्थकर-गणधरोने अपनी मौजुदगीमें जोजो प्रायछित दियेथे देवताओनेदखेथे, इसलियेउनदेवताओंकों आराधनकरके साधुलोग-ब-मुजबफरमाने उनकेपायछितलेवे, देखिये ! इसपाठमें देवताकी मददलेनासबुतहै-या-नही ? और बतलाइये ! व्यवहारसूत्रकीचुर्णिकों पंचांगीमें मानतेहो-या-नहीं ? अगर मानतेहो-तो-उसमें-देवताकी मदद
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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