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________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) ॐ (सूत्र-महानिशीथका पाठहै, ) जलजलणदुठसावय नरिदाहिं जोगणीण भए, तह भुय जख्ख रख्खस-खुद्द पिसायाणं मारीणं, कलिकलहविग्घरोहग-कंताराइ समुद्दमझेय, दुचिंत्तिय अवसउणे-संभरियव्वा इमाविज्जा, ___(माइना) पानी-आग-दुष्टजानवर-राजा-सर्प-योगिनी-भत-यक्ष-राक्षस-शुद्रपिशाच-महामारी-कलिकलह-विघ्न-रोग-महाअटवी-समुद्र-और अपशकुन-वगेरा चिंताफिक्रकेवख्त संयम और आत्मरक्षाकेलिये साधुलोग इसमहाविद्याको यादकरे, देखिये ! महानिशीथसत्रका पाठ क्याफरमाताहै, इसपाठकों तीनथुइ माननेवाले मंजुररखतेहै-यानहीं ? इसबातकी जाहिरकरे, ॐ (फिर आगे इसीमहानिशीथसूत्र में मजमूनहकि-) बर वख्त-सोनेके साधुलोग अपनी आत्मरक्षाकेवास्ते हमेशा इसमहाविद्याका पाठकरे, और बाद उसके सोवे, अगर-न-पढेतो उसको उपस्थापनाका प्रायछित लगे, जिसका खुलासापाठ यहाँ तेहरोरहै, देखो! ॐ ( पाठ-महानिशीथसूत्रका,-) तउ-एआए-पवरविज्जाए-अत्ताणगं समहिमंतिउणइमसत्तख्खरेउत्तमंगोभयखंधकुच्छीचलणतलेसु-णिसेजा,
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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