SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) मृतकसाधुको पहुचाकरमंदिरगये-वहां-अजितशांतिस्तव-कहकर वर्द्धमानतीनथुइ हीयमानकही, और कहदिया-तीनथुइ-सबुतहुइ, मगरयादरहे ! इसपाठमें प्रतिक्रमणका नामनिशानभी-नहीहै, कोइमहाशय यह-न-समझे आचार्य श्री भद्रबाहुस्वामीने आवस्यकनियुक्तिमें प्रतिक्रमणकेलिये तीनथुइ कहीहै, तीनस्तुतिपाचीनताकिताब पृष्ट (७) पर दलीलहैकि-कल्पहभाष्यमेंभी तीनस्तुतिकरनी कही. (पाठ) चेइघरुवस्सए-वाआयम्मुस्सगा गुरुसमीवंमि, अविहिं विगिंचणयाए-संतिनिमित्तं च थवो तथ्थ, १, परिहायमाणियाउ-तिनिथुइओ हवंति नियमेणं-अजियसंतिथ्थग-माझ्याउ कमसो तहिंनेउ, २, .. (माइना) मंदिरमें-या-उपाश्रयमें आकर गुरुकेसामने अविधि पारिठावनीका कायोत्सर्गकरना और शांतिनिमित्त स्तोत्रपढना. बाद उसके हीयमानतीनस्तुतिपढना, और फिर अजितशांतिस्तव पढना. - (जवाब.) देखिये ! इसमेंभी वहीबातहैकि-मंदिरऔर उपाश्रयमें आकर अविधिपारिष्टापनिकाकेलिये कार्योत्सर्गकरे शांतिनिमित्त स्तोत्र पढे और हीयमानतीनस्तुति कहे, प्रतिक्रमणकाइसमें कोइजिक्र नही. नाहक ! मंदिरका हवाला प्रतिक्रमणकी बातमें देतेहै और कहतेहै देखो ! तीनथुइ लिखीहै, मगर तारीफ जब है अगर प्रतिक्रमणमें तीनथुइ करनेकापाठ किसीसूत्र-या-पंचांगीका दिखलादो. जिससे मतलबहासिलहो, इनबातोंसें इल्मीयत जाहिर नहीहोती, लेखक अगर अपनी बातको सचसमझताहो-तो-प्रतिक्रमणकेबारेमें कोइसबुतलावे, मंदिरमेंतो एकस्तुतिपहनेकाभी पाठहै फिर एकस्तुतिकी प्ररुपणाभी शुरु करो,
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy